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[ ३६ ] केवल भाग्यही पर आधार रखकर बैठने से कार्य नहीं होमकता, जैसे तिल में तेल है परन्तु उद्यम के विना नहीं मिल सकता है । यदि उद्यम ही फलदायक माना जाय, तो उन्दुर (मूमा) उद्यम करता हुआ भी सर्प के मुख में जा पड़ता है, इसलिये उद्यम निष्फल है । यदि भाग्य और उद्यम दाही मे कार्य माना जाय तो भी ठीक नहीं होसकता है, क्योंकि कृपीवल [खेतिहर] विना ममय सत्तावान् बीज को उद्यम पूर्वक बोवे तो भी वह फलीभूत नहीं होगा क्योंकि काल नहीं है । यदि इन तीनों ही को कार्य के कारण मानें, तो भी ठीक नहीं हो सकता, क्योंकि छरमूंग [ जो मूंग चुराने से नहीं चुरती ] के बोने से काल, भाग्य, पुरुषार्थ के रहने पर भी उगने का स्वभाव न होने से पैदा नहीं होती । यदि पूर्वोक्त तीन में चौथा स्वभाव भी मिला लिया जाय, तोभी यदि होनेवाला नहीं है तो कभी नहीं होता, जैसे कि कृषीवल ने ठीक समय पर बीज बोया, तो बीज में सत्ता भी है और अङ्कुर [कुला] भी फूटा, लेकिन यदि धान्य होनेवाला नहीं है तो कोई न कोई उपद्रव से नष्ट होजायगा। इसलिये पाँचो कारणों के विना कार्य की उत्पत्ति नहीं हो सकती है। ___ मोक्ष की सिद्धि के लिये बारह प्रकार की तपस्या भी बताई हुई है। जिसके अनशनादि छः बाह्य और प्रायचित्तादि छः आम्यन्तर मेद हैं । इन बाद्याभ्यन्तर तपस्याओं
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