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[३५ ] निमित्तकारण ईश्वर, अदृष्ट और कालादि को मानते , हैं । इसमें पर्यायार्थिकनय की अपेक्षा से पूर्वोक्त परमाणु, व्यणुकादि संयोग, काल तथा अदृष्ट के कारण मानने में जैनमतानुयायियों को विवाद नहीं है, परन्तु ईश्वर को निमित्तकारण नहीं मानते हैं, क्योंकि कृतकृत्य ईश्वर को दुनिया के फन्द में डालना उचित नहीं है ।
हमलोग कार्य की उत्पत्ति में १ काल, २ स्वभाव, ३ नियति, ४ पुरुषाकार और ५ कर्म ये पाँच कारण मानते हैं । इनमें यदि एक की भी कमी हो तो कोई कार्य नहीं हो सकता। ___ पाँचो के कारणत्व में दृष्टान्त इस रीति से रखियेः- जैसे स्त्री बालकको जन्म देती है तो उसमें प्रथम काल की अपेक्षा है, क्योंकि विना काल के गर्भ धारण नहीं कर सकती। दूसरा स्वभाव कारण है, यदि उसमें बालक उत्पन्न होने का स्वभाव होगा तो उत्पन्न होगा नहीं तो नहीं। तीसरा अवश्यंभाव; यदि पुत्र उत्पन्न होनेवाला होगा तभी होगा । पुरुषाकार (उद्यम) भी उसमें दरकार है क्योंकि कुमारि कन्या के पुत्र नहीं होसकता । काल, स्वभाव, नियति और पुरुषार्थ रहने पर भी यदि भाग्य ( कर्म ) में होगा तो होगा, नहीं तो तमाम कारण निष्फल हो जायँगे।
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