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। १६ गया है। श्रद्धा, रुचि या सम्यक्त्व ये पर्यायवाची शब्द हैं। सम्यक्त्ववान् जीव धर्म का अधिकारी होता है। धर्म के दो विभाग हैं; एक साधुधर्म और दूसरा गृहस्थधर्म ।
साधुधर्म दश प्रकार का माना गया है:"खन्ति, मद्दव, अजव, मुत्ति, तव संजमे अ बोद्धवे। · सच्चं, सोअं, अकिंचणं च बम्भं च जइधम्मो”
क्षान्ति ( क्रोधाभाव ), मार्दव ( मानत्याग ), आर्जव ( निष्कपटता ), मुक्ति (लोभाभाव ), तप ( इच्छाऽनुरोध), संयम ( इन्द्रियादिनिग्रह ), सत्य (सत्यबोलना ), शौच ( सब जीवों के सुखानुकूल बर्तना, अथवा अदत्त पदार्थ का ग्रहण नहीं करना), अकिञ्चन ( सब परिग्रह का त्याग अर्थान् ममता से निवृत्ति),ब्रह्म (सर्वथा ब्रह्मचर्य का पालन) ये दश प्रकार के साधुधर्म हैं ।
जैनसाधु लोग दशप्रकार के यतिधर्म पालने के लिये अर्हन् , सिद्ध, साधु, देव और आत्मा की साक्षी देकर जनसमुदाय के बीच में प्रतिज्ञापूर्वक पञ्चमहाव्रत को ग्रहण करते हैं, कि 'हम साधुधर्म अपने आत्मा के कल्याण के लिये मन, वचन और काय से पालन करेंगे'। जिन पञ्चमहाव्रतों को जैनशास्त्र में मूलगुण बताया है, उनकी व्याख्या क्रम से आगे की जाती है:
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