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________________ वैद्य-सार ८५ १२१-शीतज्वरे शीतभंजरमः पारदं रसकं तालं शिला तुत्थं च टंकणम् । गन्धकं च समं पिष्टवा कारवेल्ल्या रसैदिनम् ॥१॥ शिव मूलरसैः पिटवा निर्गुण्डी स्वरसेन च । ताम्रपत्रे प्रलिप्वा च भाण्डे पत्रमधोमुखम् ॥२॥ कृत्वा रुन्या मुखं तस्य वालुकाभिः प्रपूरयेत् । पश्चादग्निना तुल्या ताम्रपत्रस्य रक्तता ॥ ३ ॥ एवं पुटनयं दद्यात् स्वांगशीतलमुद्धरेत् । ताम्रपत्रं समुद्धृत्य चूर्णयेन्मरिचं समम् ॥ ४॥ शीतभंजरसो नाम पर्णखंडरसेन च | शीतज्वरविषयोऽयं पूज्यपादेन भाषितः ॥ ५॥ टोका-शुद्ध पारा, शुद्ध खपरिया की भस्म, हरताल की भस्म, शुद्ध शिला, शुद्ध तूतिया की भस्म, टंकण भस्म, शुद्ध गन्धक इन सबको बराबर-बराबर लेकर खरल में एकत्रित करके करेले के पत्तों के रस से एक दिन भर घोंटे तथा एक दिन 'मुनगा के स्वरस से घोंटे, एक दिन नेगड़ के रस से घोंटे और शुद्ध पतले तामे के पत्रों पर लेप करके एक हंडी में रख कर नीचे को मुख करके उसका मुख बन्द करके बाकी की जगह बालू से पूर्ण कर नीचे से अग्नि जलावे, जब वह तामे का पत्र लाल वर्ण हो जाय तब निकाल लेवे। इस प्रकार तीन पुट देवे, जब ठीक पाक हो जाय तामे के पत्रों को निकाल कर सब चूर्ण बना कर रख लेवे और काली मिर्च बरावर मिला कर पान के रस के साथ यथा योग्य मात्रा से यह शीतज्वर रूपी विष को नाश करनेवाला शीतभंज रस पूज्यपाद स्वामी ने कहा है। १२२-श्वासादौ अमृतसंजीवनो रसः सूतश्च गन्धको लौहो विषश्चित्रकपत्रकौ । विंडंग रेणुका मुस्ता चैला प्रन्थिककेशरौं । त्रिकटुत्रिफला चैव शुल्वभस्म तथैव च ॥ एतानि समभागानि ,द्विगुणं गुड़मेव च । तोलप्रमाणवटिकाः प्रातःकाले व भक्षयेत् ।। श्वासे कासे क्षये मेहे शूलपांडुगुदाकुरे । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034880
Book TitleJain Siddhant Bhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Professor and Others
PublisherJain Siddhant Bhavan
Publication Year1938
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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