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________________ ५४ वैद्य-सार मुलहठी इन सब के अनुपान से उसको सेवन करावे । इसके सेवन कराने से इन्द्रिय की कमजोरी, दाह, पित्तज्वर, मार्ग में चलने की थकावट, सर्व प्रकार के प्रमेह, मजा, धातु के दोष इन सब को नाश करनेवाला है, इसमें कुछ संदेह नहीं है। यह सब प्रकार के प्रमेहों को दूर करनेवाला श्रीपूज्यपाद स्वामी ने कहा है। १२०-सर्वज्वरे मृत्युञ्जयरसः रसगंधकौहि जयपालः तालकश्च मनःशिला । ताम्रश्च माक्षिकः शुंठीमुसलीरसमर्दितः ॥१॥ कुक्कुटे च पुटे सम्यक् पक्तव्यः मृदुवह्निना | स्वांगशीतलमुद्धृत्य गुंजामात्रप्रमाणकम् ॥२॥ शुद्धशर्करया खादेत् शीततोयानुपानतः । पथ्ये क्षीरं प्रयोक्तव्यं दधि वापि यथारुचि ॥३॥ संततादिज्वरोऽयमनुपानविशेषतः। मृत्युञ्जयरसश्चासौ पूज्यपादेन भाषितः ॥४॥ टीका-शुद्ध पारा, शुद्ध गंधक, शुद्ध जमालगोटा, हरताल भस्म, शुद्ध मेनशिल, तामे की भस्म, शुद्ध सोनामक्खी , सोंठ इन सब को मुसली के रस से मर्दन करे तथा कुक्कुट पट में पाक करे और ठंढ़ा होने पर निकाल कर एक-एक रत्ती के प्रमाण से मिसरी की चासनीके साथ शीतल जलके अनुपान से सेवन कराधे। पथ्य में दूध देवे तथा रोगी को अरुचि होवे तो दधि भी खिलावे (?)।यह संततादि ज्वरों को नाश करनेवाला मृत्युञ्जय रस पूज्यपाद स्वामीने कहा है। मतान्तर ताप्यतालकनेपाल-वत्सनामं मनःशिला। ताम्रगन्धकसूताश्च मुसलीरसमर्दिताः॥ मृत्युश्चय इति ख्यातः कुकृटीपुटपाचितः । वल्लद्वयम् प्रमंजीत यथेष्टं दधि मोजनम् ॥ नवज्वरं सन्निपातं हन्यादेष महारसः ॥ १९ तरहका मृत्युञ्जय रस है यह १४ के पाठ से मिलता है । एक चीज का फर्क है, इस में सोंठ है उसमें सिंगिया लिखा है। इस ग्रन्थ के रस रसरत्न-समुच्चय, रससुधाकर, रसपारिजात से अधिक मिलते हैं। रसरत्नसमुच्चय बौद्धों का बनाया हुआ ग्रन्थ प्रसिद्ध है; मुमकिन है यह उसी समयका हो। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034880
Book TitleJain Siddhant Bhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Professor and Others
PublisherJain Siddhant Bhavan
Publication Year1938
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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