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________________ ८५ प्रशस्ति-संग्रह एकद्वयादिलगक्रियाप्तगणनामानप्रमाणालयैमेरुक्ष्माधरवद्विरच्य खटिकोत्कीर्णैरथाद्यालये । वृत्तंन्यस्य तदादिम द्विगुणयंस्तस्याप्यधः स्थापये देकोनेन तदोपरि पगिलिखेदेवं हि मेरुक्रिया ॥१०॥ खण्डमेरुप्रस्तारो यथा सैकामैकगणोज्ज्वलामभिमतच्छन्दोऽतरागारिकामेकां श्रीणिमुपतिपन्नधरतोऽप्येकैकहीनाश्च ताः । ऊर्ध्व द्विद्विगृहांकमेलनमधोधः स्थानकेष्वालिखे देकच्छन्दसि खण्डमेरुरमलः पुंनागचन्द्रोदितः ॥११॥ एतत्पयोक्तक्रमेण प्रस्तारे कृते विवक्षितछन्दसः लगक्रियया सह ततः पूर्वस्थितसकलछन्दसा लगक्रियाः सर्वाः समायान्तीत्यर्थः ॥ (इन के नीचे प्रस्तार के तीन कोष्ठक भी हैं) दिगम्बर जैन-साहित्य-भाण्डार में छन्दोग्रन्थ-सम्बन्धी अजितसेन के छन्दःशास्त्र, वृत्तवाद एवं छन्दःप्रकाश, आशाधर के वृत्तप्रकाश, चन्द्रकीति के छन्दकोष (प्राकृत) एवं वाग्भट के प्राकृतपिङ्गल सूत्र ये ही नाम मिलते हैं। परन्तु इन में अभीतक कोई प्रन्थ मुद्रित नहीं हुआ है। अब रही प्रस्तुत पुस्तक 'रत्न-मंजूषा' की बात'। पं० नाथूराम जी प्रेमी के द्वारा संग्रहीत “दिगम्बर जैनग्रन्थकर्ता और उनके ग्रन्थ" इस ग्रन्थतालिका में इसके कर्ता हेमचन्द्र कवि बतलाये गये हैं | परन्तु इस छन्दोग्रन्थ के अन्तिम भाग के अन्तिम श्लोकान्तर्गत 'पुन्नागवन्द्रोदितः' इस वाक्य से तो ज्ञात होता है कि पुंनागचन्द्र या नागचन्द्र ही इसके प्रणेता हैं। प्रेमी जी के कथनानुसार अगर इस 'रत्नमंजूषा' के रचयिता हेमचन्द्र कवि होते तो 'पुनागचन्द्रोदितः' के स्थान पर बड़ी आसानी से 'श्रीहेमचन्द्रोदितः' लिख देते। क्योंकि ऐसा करने से छन्दोभंग का उन्हें जरा भी भय नहीं रह जाता था। साधनाभाव से इस समय इसके कर्ता के बारे में कुछ भी प्रकाश नहीं डाला जा सका। यदि थोड़ी देर के लिये अर्थात् प्रेमी जी ने किस आधार पर इस का कर्ता हेमचन्द्र कवि लिखा है-यह बात जब तक स्पष्ट नहीं होती तब तक के लिये नागचन्द्र को ही इसका प्रणेता माना जाय तो महाकवि धनंजय-कृत विषापहार-स्तोत्र के संस्कृत टीकाकार कवि नागचन्द्र * की ओर मेरी दृष्टि कुछ कुछ आकृष्ट हो जाती है। पर यह एक अनुमान क्ष देखें-'प्रशस्ति-संग्रह' पृष्ट ३७ । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034880
Book TitleJain Siddhant Bhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Professor and Others
PublisherJain Siddhant Bhavan
Publication Year1938
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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