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________________ किरख ३] विविध विषव लेखक इन श्रमण लोगों को बौद्ध प्रकट करते हैं। अत एव यह आवश्यक है कि तत्कालीन साहित्य 'चचनामा' आदि का सूक्ष्म अध्ययन किया जाय और देखा जाय कि उनमें श्रमण शब्द किन लोगों के लिये व्यवहन हुआ है। विज्ञप्रि-त्रिवेणी' आदि जैन ग्रंथों से भी सिंधुदेश में जैनधर्म का प्रावल्य स्पष्ट है। उपर्युक्त उल्लेख के अतिरिक्त "नैषधीयचरित" के सर्ग ९ श्लोक ७१ और सग १३ श्लोको ३६ में भी जैनधर्म का सामान्य उल्लेख है। 'प्रशंसितुं संसदुपान्तरं जिनम्, श्रिया जयन्तं जगतीश्वरं जिनम् । गिरः प्रतस्तार पुरावदेवता, दिनान्तसन्ध्यासमयस्य देवता ॥' (नेपध स्गं १२, श्लो०८७ ) नैषध के इस इलोक में जैनधर्म का स्पष्ट उल्लेख है। --का प्रम "जैन ऐन्टीक्वेरी” के लेख (सितम्बर १९३७) [२] १ प्रो० ए० एन० उपाध्ये ने जैनधर्म में योग का स्थान क्या है ? यह बताया है। इस लेख का सार हिंदी भाषा में 'रायचन्द्र-ग्रंथमाला', बम्बई में प्रकाशित 'परमात्म-प्रकाश की भूमिका में दिया गया है। २ डॉ. सुकुमार रजन दास, एम०ए०, पी०एच०डी० ने जैनज्योतिष पर लिखते हुए बताया है कि वह ज्योतिष वेदांग के समान है। जैन ज्योतिष में युग पांच वर्षों का माना गया है और उसका प्रारंभ अमिजित नक्षत्र से होता है। इस युग में ६० सौर्यमास, ६१ ऋतुमास, ६२ चान्द्रमास,६७ नक्षत्रमास होते हैं। एक युग में चन्द्र की अभिजित नक्षत्र से ७ बार मेंट होती है और सूर्य का समागम सिफ पाँच दफा होता है। जैनज्योतिष में महीनों के नाम निम्न प्रकार है :प्रचलित नाम जैनग्रंथ प्रचलित नाम जैन नाम १-श्रावण अभिनंदु ७-माघ शिशिर २-माद्रपद सुप्रतिष्ठ ८-फाल्गुण हैमवाम् Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034880
Book TitleJain Siddhant Bhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Professor and Others
PublisherJain Siddhant Bhavan
Publication Year1938
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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