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किर
१ ज्योतिष- सारोद्धार चौ०
२ लीलावती चौ०
१ महादेवी - दीपिका
२
जातक दीपिका
३ जातकपद्धति
४ विवाह-पटल अर्थ
आयसद्भाव प्रकरण
१
२ अर्धकांड
३ रिट्ठसमुच्चय
४ जिनसंहिता
५ गणितसार सटिप्पण
१ कालक-संहिता
२ भद्रबाहु संहिता प्रा० ३ चातुर्मासिक कलंक
१ वैद्यकसार-संग्रह
२ वैद्यमनोत्सव ३ कोकशास्त्र चौ०
४ रसामृतश्री
जैनज्योतिष और वैद्यक प्रन्थ
जैनेतर ग्रन्थों पर जैन टीकाएँ
गणित आनंदमुनि १७३१
धनराज
खर० हर्षरत्न सं० १७६५
जिनेश्वरसूरि (जैन ज्ञान-मंदिर, बड़ौदा ) ... खर० विद्याहेम सं० १८३७
दि० ज्योतिष - ग्रन्थ
मलिषेण
दुर्गदेव मुनि
• दुर्गददेव सं० १०८९ एकसंधि भट्टारक
010
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अनुपलब्ध
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खर० लाभवद्ध न १७३६
...
• भद्रबाहु
४ तिथिकुलक ५ मेघमाला - विजयहीर सूरि श्वेतांबर वैद्यकहर्ष कीर्त्ति
-ग्रन्थ
अंचल नयनसुख
...
महावीराचार्य ज्योतिष-ग्रन्थ कालकाचार्य
...
बुदाचार्य माणिक्यदेव
दि० वैद्यक
१ हितोपदेश (गु० अनुवाद - सहित मुद्रित )
जैनेतर वैद्यक ग्रन्थ पर जैन टीका
१८०
१ योगशतक टीका, मूल वररुचि टीका समंतभद्र (जैनेतर ?)
नोट-गत अंक में प्रकाशित लेख में पृष्ठ ११४ लाईन तीसरो से ६
प्रन्थों का नाम 'जैनेतर ग्रंथों पर जैन टीकाए" शीर्षक के नीचे आना चाहिये । सन्निपात कलिका टा कर्त्ता हेमनिधान सं० १७०३ और कविप्रमोद सं० १७६६ होना चाहिये । शास्त्री जी के सूचित ग्रन्थों में १ ज्योतिषसार २ योगचिंतामणि श्वे० ग्रंथ हैं । अष्टांगहृदय का कर्त्ता जैनेतर है।
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