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________________ भास्कर मुकति-रमणि रंगि सो रमर, बसु-गुण-मंडित सोइ हो । नंतचतुष्टय सुषु घणां, जम्मणु मरणु न होइ हो ॥ मेरी मुकति० ॥ गुरु मुनि माहिदसैनु हुइ, पदपंकज नमि तासु हों। सहरि सुहाबइ बूडिए, भनत भगौतीदासु हो ॥ मेरी मुकति०॥ राजबलि जहांगीर कह फिरिय जगति तिस आण हो । ससिरसवसुविंदा धरहु संवतु गुणहु सुजान हो॥" १३ वी रचना "योगी रासा" है और वह इस प्रकार है: "परम निरंजनु, भवदुह-भंजनु जिनु-जोगी जग-नाथो । आदि जगद गुरु मुकति-रमणि यरु ताहि नवाऊ माथो ॥१॥ बोध दियायर गणहर हुएते नमि पणमौं पाया । साहु-सिरोमणि लोहावारजु जिनि जिणमग्गो बताया ॥२॥ पेषहु हो तुम पेषहु भाई, जोगी जगमर्हि सोई। घट-घट-अन्तरि बसइ चिदानन्दु अलषु न लषद कोई ॥३॥ भव-वन भूलि रह्यौ भ्रमिरावलु, सिवपुर-सुधि विसराई । परम प्रतिदिय सिवसुषु तजि करि विषयनि रहिउ लुभाई ॥ ४॥" "नंतचतुष्टय-गुण-गण राजहिं तिन्ह को हउ बलिहारी । मनि धरि ध्यानु जपहु शिवनाइक, जिउ उतरहु भवपारी ॥ ३७॥ "जोगीरासौ सुणहु भविकजणं, जिउ तूटहिं कर्मपासो। गुरुमुणि माहिदसेन-चरण नमि भनत भगवतीदासो ॥ ३८॥" १४ वी रचना "अनथमी' शीर्षक इस प्रकार है। "नवे पिण सामिय वीर जिणिद, तिलोय पयासण-बोह-दिणिंह । पयत्थंह भाषणणेय पयार, गणिंद नमामि भवोवहितार ॥१॥ सुरिंद नरिह समुच्चिय जाणि, सयपणमामि जिणेसर-चाणि, पयासमि गुणु अणथमिय सुलोइ । सुणेहु तु सावयणिश्चल होर ॥२॥ मुर्णिदु जनिंदु महिंदजिसँनु जिणि उरणि दुर्द्धर दुर्जय मैंनु । गमों पर-संकज मणावर तासु, सुपंडित भगा भगवतीदाख ॥ २६ ॥" Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034880
Book TitleJain Siddhant Bhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Professor and Others
PublisherJain Siddhant Bhavan
Publication Year1938
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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