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________________ १५६ भास्कर [भाग १ तथा श्रीपार्श्वनाथजी की प्रतिमायें पायी गयी हैं और इनमें श्रीपार्श्वनाथ जी की प्रतिमा सब से अधिक लोकप्रिय है। मूर्तियों के आकार-प्रकार, उनमें अङ्कित चिह्नों, उनके पार्श्ववर्ती शिला-लेखों तथा उनके नग्नत्व से वे जैनियों की ही प्रमाणित मूर्तियाँ मानी जाती हैं। मूर्ति-निर्माणकला के अध्ययन से पता चलता है कि बंगाल की सभी जैनमूर्तियाँ 'पाल' राज्यवंश के समय की हैं। तुलनात्मक रूप से विचार करने से पता चलता है कि उस काल की जितनी धार्मिक मूर्तियों पाई गयो हैं उनमें जैन प्रतिमाओं की संख्या बहुत ही कम है और यही जैनियों के अल्प संख्या में होने का प्रमाण है। इस में अब कुछ भी संदेह नहीं रह गया है कि 'पाल' राज्यवंश के शासनकाल के आरंभ से ही जैनियों की संख्या दिन प्रतिदिन क्षीण होती गई और उसी समय से बंगाल में जैनधर्म की अवनति के लक्षण दृष्टिगोचर होने लगे। तब से आजतक बंगाल में जैनधर्म की अवनति ही होती आई है और उसके प्रमाण- स्वरूप आज का बंगोल और उसका जैनधर्म सब के समक्ष उपस्थित है। अभी पूरी खोज हो कहां हुई है ? फिर भो बंगाल के भिन्न-भिन्न जिलों के गजेटिबरों से स्पष्ट है कि प्रत्येक स्थान पर अनेक प्राचीन जैन चिह्न विद्यमान हैं। -संपादक + 'इण्डियन कलचर' जनवरी १९३७ में प्रकाशित Jainism in Bengal' का रूपान्तर । -लेखक क Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034880
Book TitleJain Siddhant Bhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Professor and Others
PublisherJain Siddhant Bhavan
Publication Year1938
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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