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________________ ११. भास्कर [भाग ४ पता लगाना उचित है। फाल्गुन सुदी पड़वा को संघ चंपापुर पहुंचा था। वहां की वंदना करके फाल्गुन सुदी ४ को संघ वापस हुआ और वाद-नामक नगर में पहुंचा। यहां पर पहले जाते हुए पटना के जैनी लोग श्रोजी-सहित आकर यात्रासंघ में मिले थे और साथ साथ वंदना कर आये थे। वह अब यहां से अपने घरों को चले गये। सचमुच उस दुष्कर काल में तीर्थ यात्रा करना सुगम न था। पटना के श्रावकों ने इस सुयोग से लाभ उठाया। कैसा वह पुण्यमय अवसर था ! उन सहधर्मी भाइयों को श्रीजो के साथ विदा करते समय रथयात्रादि उत्सब किया गया था। श्रावकों ने परस्पर वात्सल्य धर्म का परिचय दिया था-जरा विचार कीजिये उस अनूठे अवसर को-मुक्तकंठ से कौन नहीं कहता होगा तब 'धन्य धन्य साधर्मी जन मिलन को घरी।' वहां से विदा हो संघ काशी में आकर ठहरा । नौ रोज वहां विश्राम करके चला सो महदी घाट पर उसने गङ्गा पार किया। वैसाख वदी ७ को गङ्गाधरपुर में संघ ठहरा और वैसाख बदी १२-१३ को वापस मैनपुरी पहुंचा। कवि कहते हैं कि देश-देश के लोग सब अपने-अपने घर को वापस गये और वह यह भी बताते हैं कि उन सबका साहु धन सिंह ने ओर-छोर उपकार किया था। धन्य थे वह महानुभाव, जिन्होंने साधर्मीजनों की सेवा में अपना तन-मन धन लगाया था और उनके लिये धर्मसाधन का परम योग उस जमाने में दुर्लभ सम्मेद शिखर जैसो तीर्थराज की यात्रा का सुयोग सुलभ किया था। सहस्रकण्ठारव जिनेन्द्र के पवित्र नाम से दिशाओं को पवित्र बना रहा था। यह सुअवसर अधिकाधिक संसार में सुलभ हो, यही भावना इस "सम्मेद शिखिर यात्रा का समाचार" पढ़ने से हृदयमें जागृत होती है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034880
Book TitleJain Siddhant Bhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Professor and Others
PublisherJain Siddhant Bhavan
Publication Year1938
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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