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किरण ३ ]
सम्मेद शिखरजी को यास का समाचार
मनोहर प्रतिमा को रथ में विराजमान कर संघ के साथ रक्खा गया था, जिससे यात्रा में जिनदशन का अन्तराय न हो ! पहले ही संघ खरपरी गांव में ठहरा था, जो मैनपुरीके पास है । कार्तिक वदी १२ को महदी घाट पहुंच कर उन्होंने गङ्गा पार की। कई घाटों से बहुत-सी नाव इक्कठी की गई परन्तु तब भी संघ दो रोज में पार उतर पाया। इससे उसकी विशालता का पता चलता है | कार्तिक सुदी १३ को संघ रतनपुर पहुंचा, जिसे नौराही कहते थे । वहाँ से चल कर कार्तिक सुदी १४ को अयोध्या पहुंचा; जहाँ खूब धूमधाम के साथ रथयात्रा निकाली गई । रथयात्रा में बलमधारी चपरासी - सिपाही आदि भी थे । वस्तुतः जैन रथयात्राओं के आगे शस्त्रास्त्र से सुसज्जित हाथी, घोड़े, प्यादे आदि होना ही चाहिये, जैसा कि कवि ने लिखा है। पांच तीर्थंकर भगवान के जन्मस्थान पृथक् पृथक् थे- संघ ने उनकी वंदना की थी । पश्चात् मगसर बढ़ी १५ कां बनारस पहुंचा और भेलूपुरा के मन्दिर के निकट ठहरा। यहां भी रथ यात्रा निकाली गयी थी और धर्मचक्र का पाठ किया गया था । वंदना करके संघ आगे चल कर पौप बढ़ी ४ को पटना पहुंचा । वहाँ खूब जोर की वर्षा हुई जिसके कारण संघ एक माह तक वहां ठहरा रहा; फिर चज़ कर पौष शुक्ल ४ को संघ ने पात्रापुर की वंदना की। संघ जल-मंदिर के निकट ठहरा था और उसके पहले चौक में आदि जिनेन्द्र की प्रतिमा विराजमान करके संघ ने पूजा - भजन किया था । जल-मंदिर का कवि ने खूब ही सूक्ष्म वर्णन किया है। आगे उसी महीने की नवमी को संघ राजगृह पहुंचा और वंदना की थी । यहाँ संघ ने समोशररण पाठ विधान किया था । उपरांत माघ बदी २ को संघ नवादा पहुंचा था। वहां गौतम स्वामी की वंदना करके संघ माघ बदी १३ को पालगंज पहुंचा था। वहां राजा सुत्ररन सिंह जी थे। संघ उन से मिलकर आगे गया था । माघ सुदी ३ को मधुवन में डेरा दिया गया था। वहां संघ ने चार चैत्यालयों की वंदना की थी । वसंत पञ्चमो को संघ ने श्री सम्मेद शिखरपर्वत की वंदना की थी उसका भी पूरा विवरण aa ने लिखा है जिससे प्रकट है कि तब बीन में नीचे तलहटी के मंदिर की वंदना भी दिगम्बर जैनी करते थे I पर्वत वंदना से लौट कर मधुवन में धर्मोत्सव मनाया गया और रथयात्रा निकाली गई, जिसमें पालंगज के राजा भी सम्मिलित हुए थे । इस प्रकार सानन्द पूजा वन्दना करके माघ सुदी पूनम को संघ ने मधुवन से प्रस्थान किया। फागुन बदी ८ को बैजनाथपुर आये । यह शिव की वंदना करने अन्यमती लोग अधिक संख्या में आते लिखा है; परन्तु वहां भी संघ को पार्श्व भगवान् के दर्शन हुये थे । कवि कहते हैं कि :
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"पंडन मठ मंदिर मांही- प्रतिबिंब जिनेश्वर माहीं । तिनको भी शिवजु कहै हैं -नित सेवा मांहि रहे हैं ।"
शायद अत्र भी यह जिनमूर्ति वहां के पंडा लोगों के पास होगी।
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इस प्राचीन मूर्ति का
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