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________________ मास्कर [ भाग. विवेकी नर-रत्न थे। उन में सब से छोटे साहु श्यामलाल जी थे। ज्ञात होता है कि मन वह संस्कृत के विद्वान् थे, क्योंकि कवि कमलनयनजी को संस्कृत भाषा में रचे हुए 'जिनदत्त-चरित्र' का अर्थ जहाँ-तहाँ इन्होंने ही बताया था ।* इस उल्लेख से यह भी स्पष्ट है कि कवि कमलनयन जी ने जिन नगरावार काश्यप गोत्री नन्दरामजी का उल्लेख किया है, वह रुइया वंशके ही थे, क्योंकि उन्होंने श्यामलालजी को साहु नन्दराम का पुत्र लिखा है, जैसे कि वे रुइया वंश-वृक्ष में भी बताये गये हैं। अच्छा तो, इन्हीं धर्मात्मा सज्जनोत्तम साहु धनसिंहजी का श्रीसम्मेद-शिखरजी तीर्थराज की वंदना सहधर्मी भाइयों के साथ करने का शुभ-भाव हुआ। लोगोंने यह समाचार चाव से सुना, क्योंकि उस ज़माने में तीर्थ यात्रा करना अत्यन्त दुष्कर था। न तब तेज रफ्तार से चलनेवाली सवारियां थीं और न सड़कें ही पुख्ता और सुरक्षित थीं। भक्तजन तीर्थ यात्रा करने के लिये तरसते थे। बस, तब धर्मश्रद्धालु भव्यजनों को साहु धनसिंहजी का प्रस्ताव बड़ा रुचिकर हुआ। सर्वसम्मति से साहु धनसिंहजी के नेतृत्व में एक यात्रा-संघ मैंनपुरो से मिती कार्तिक कृष्णा पञ्चमी बुध वार संवत् १८६७ को सम्मेद-शिखर तीर्थ की यात्रा के लिये चला। कहते हैं कि इस यात्रा-संघ में करीब २५० बैलगाड़ियाँ और करीब १०८० यात्रिगण थे । साहु धनसिंह जी ने उनकी हर तरह से सार-संभाल कर उपकार किया था। पाठकगण शायद आश्चर्य करें कि यह पुरानी बात मालूम कैसे हुई ? क्या यह केवल सुनी हुई बात है ? वास्तव में यह केवल सुनो हुई बात नहीं है, बल्कि एक प्रामाणिक वार्ता - है और इसका प्रमाण "श्री समेदसिखिर की यात्राका समाचार" नामक हस्त लिखित पुस्तिकायें हैं, जो हमें अलीगञ्ज और मैंनपुरी के जैन-मंदिरों में देखने को मिली हैं। इन पुस्तिकाओं में उपर्युक्त यात्रा-संघ का पूर्ण विवरण पद्य में लिखा हुआ है। जिस पुस्तिका के आधार से हम लिख रहे हैं, उसका आकार ९॥४४॥ इञ्च है और उसका काराज देशो और मोटा है। उसमें लिखे हुये कुल ११ पृष्ठ हैं। आरम्भ में एक पृष्ठ विना लिखा हुआ है। उसके बाद दूसरे पृष्ठ की दूसरी तरफ से रचना लिखी गई है। प्रत्येक पृष्ठ में करीब १७-१८ पंक्तियाँ हैं। यह प्रति संवत् १८६९ वैसाख कृष्ण ४ गुरुवार की लिखो हुई है और इसे किन्हीं 'भोलानाथ कायस्थ' ने लाला सोहन लाल के पठनार्थ लिखा था। उल्लिखित वंशवृक्ष देखने से ज्ञात होता है कि ला० सोहनलाल साहु धनसिंह के भतीजे थे। यह प्रति हमें स्व. पं० श्रीराजकुमार जी द्वारा प्राप्त हुई थी और अब हमारे पास है। किन्तु खेद है कि इस यात्रा-समाचार रचना के रचयिता के नाम-धाम का पता कुछ भी नहीं * "श्यामलाल के सहाइ पुत्र, नन्दराम गाई, अर्थ जिन दीइ बताय, नाहि जहां जानिया ।" -जिनदत्तचरित्र (जसवन्त नगर की प्रति) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034880
Book TitleJain Siddhant Bhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Professor and Others
PublisherJain Siddhant Bhavan
Publication Year1938
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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