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________________ महाप्रभाविक जैनाचार्य ६७ misaHI10-0:18.SAL.HINDolth IIMSLTALIMILITANSill IUS FINDIA ISel ||locoln ><hiIDI |SKRI NATURA-TRIBANS-Tum पूज्य खोड़ाजी स्वामी लगभग है । भगवती सूत्र जैसे विशाल तथा सूक्ष्म 'श्री खोड़ाजी काव्यमाला' के नाम से आपके रहस्यपूर्ण ग्रन्थ का अनुवाद करना कम विद्वत्ता का स्तवन और स्वाध्याय गीतों का संग्रह प्रकाशित हो । काम नहीं हो सकता। इसी प्रकार उत्तराध्ययन, चुका है। गुजराती साहित्य में भक्त कवि अखा का दशवैकालिक सूत्र आदि शास्त्रों का भी उत्तमता जैसा स्थान है वैसा ही गुजराती नैन साहित्य में पूर्वक अनुवाद किया है । ये अनुवाद उनकी असाधा ___ रण विद्वत्ताकी चिरस्थायी कीर्तियाँ हैं। इन अनुवादों पूज्य खोडा जी का स्थान है। के अतिरिक्त उनकी मूल रचनाएँ भी कम नहीं हैं। पूज्य श्री देवचन्दजी महाराज भ्रम विध्वंसनम्', 'जिन आज्ञामुख मण्डनम्', पूजा श्री देवचन्दजी महाराज इस संप्रदाय में प्रश्नोत्तर तत्वबोध', आदि ग्रन्थ स्व सम्प्रदायिक उपाध्याय थे। वि० सं० १६४० में आपका जन्म हुआ विषयों की पुस्तकें हैं। था। आपके पिता का नान सेठ साकरचन्द भाई था। महासती जी श्रीपार्वती जी महाराज वि० सं० १६५७ में आपने दोक्षा गहण की । न्याय, महासती श्रीपार्वतीजी (पंजाब) का नाम वर्तमान व्याकरमा और साहित्य के आप प्रखर विद्वान थे। में सुप्रसिद्ध है । आपका जन्म आगरा जिले में संवत् 'ठाणांग-सूत्र' पर भाषान्तर भी आपने लिखा है। १६१६ में हुआ था । सं० १९२४ में केवल पाठ न्याय के पारिभाषिक शब्दों को सरल रीति से वर्ष की अवस्था में आपने दीक्षा ग्रहण की थी। समझाने वाला आपने एक अन्य लिखा है । संवत् संवत् १९२८ में आप पंजाब के श्री अमरसिंह जी २००० में पोरबन्दर में श्रापका स्वर्गवास हुमा । महाराज की संप्रदाय में सम्मिलित हुई आप बड़ी श्राचार्य श्री जोतमलजी स्वामी क्रिया पात्र थीं। पंजाब के साथी संघ पर तो बाप तेरहपंथी संप्रदाय के चतुर्थ पट्टधर आचार्य श्री का प्रभुत्व था ही; परन्तु श्रमण संघ भी आपकी जीतमलजी स्वामी का जन्म सं० १९६० में पासोज आवाज का आदर करता था। आपने अनेक प्रान्तों सुदी १४ को मारवाड़ के रोहित गाम में हुआ था। में विचरण कर के धर्मध्वजा फहराई थी। भाषने उनके पिता का नाम आइदानजी गोलेगा और माता संस्कृतप्राकृत आदि भाषाओं का बडा ही सरस शान का नाम कलुजी था। इनकी दीक्षा नव वर्ष की उम्र प्राप्त किया था । आपने 'ज्ञान दीपिका', 'सम्यक्रम में जयपुर में हुई थी। भीखणजी को छोड़ कर अन्य सूर्योदय,' सम्यक् चन्द्रोदय आदि महान अन्यों की सब प्राचार्यों की तरह ये भी बाल ब्रह्मचारी थे और रचना की है । श्राप के ग्रन्थों में अद्भुत तक और बाल्यावस्था में ही तीब्र वैराग्य से अपनी माता तथा सबाट दलीलें भरी हुई हैं। आपके विरोधी मापकी दो भाई के साथ दीक्षा ली थी। जीतमलजा महाराज दलीलों का बुद्धिपूर्णक उत्तर देने में असमर्थ होने के असाधारण विद्वान और प्रतिभाशाली कवि थे। कारण सद्रता पर उतर जाते थे। 0 १७में उनकी कविनाओं की संख्या तीन लाख गाथाओं के जालंधर में आप का स्वर्ग स हुआ। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034877
Book TitleJain Shraman Sangh ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain
PublisherJain Sahitya Mandir
Publication Year1959
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size133 MB
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