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________________ जैन श्रमण संघ का इतिहास HIDDuno LIMDIHED OUTHIDADIBIHIDDHIDIHIDII IITD DIMUIDAI0.10-0IIII DIN IID OIHI HIDDIR TRIOD In IDMID DIDDIA १० वामनवाद जी गांव जहाँ महावीर स्वामी का नाम रखा गया । सं. १६४७ में आपने भी जवेर सागर मन्दिर है वह सिरोही नरेश को उपदेश देकर वह जी से दीक्षा गृहण की, और आपका नाम आनन्दसाजैनियों को दिलवाया। गरजी रक्खा गया। सं० १६६० में आपको "पन्यास" ११ रोहीदा ( मारवाड़) में ब्राह्मण लोग जैन एवं “गणीपद" प्राप्त हुआ। आपके विद्वत्ता पूर्ण एवं मन्दिर नहीं बनने देते थे सो आपने सिरोही नरेश सारगर्भित भाषणों ने जैन जनता को प्रभावित किया। को कहकर मन्दिर बनवाया । आपने एक लाख रुपयों की लागत से सरत में सेठ ऐसे अनेकों कार्य हैं जो पूज्य श्री मोहनलालजी देवचन्द लालभाई जैन पुस्तकोद्धार फन कायम म० की कीर्ति सदा अमर रक्खेंगे। कराया । बम्बई में जैन जनता को संगठित करने के ऐसे महापुरुष संवत् १६६३ वैशाख वदी १२ समय आप "सागरानन्द” के नाम से मशहूर हुए। (गुज० चैत्र व० १२) को सूरत में स्वर्गवास पधारे। सं० १६७४ में आपको आचार्य विजवकमलसरिजी ने श्री प्राचार्य जिनकपाचन्द्र सरीश्वरजी भाचार्य पद प्रदान किया । आपका स्थापित किया हुआ सूरत का 'श्री जैन आनन्द पुस्तकालय' बम्बई __आपका जन्म चांमू ( जोधपुर ) निवासी मेघर प्रान्त में प्रथम नम्बर का पुस्तकालय है। इसी तरह थजी बापना के गृह में संवत् १९१३ में हुआ। आगम ग्रन्थों के उद्धार के लिए आपने सूरत, रतलाम, संवत् १९३६ में अमृतमुनिजी ने आपको यति सम्प्र कलकत्ता, अजीमगंज, उदयपुर आदि स्थानों में दाय में दीक्षा दी। आपने खेरवाड़े के जिन मन्दिर लगभग १५ संस्थाएं स्थापित की। इन्हीं गुणों के कारण की प्रतिष्ठा करवाई। आपने मालवा, मारवाड, श्राप "आगमोद्धारक" के पद से विभूषित किये गये। गुजरात, काठियावाड़, बम्बई में कई चातुर्मास कर पालीताणा में बना हुआ आगम मन्दिर पापही की जनता को सदुपदेश दिया। आप सम्वत् १६७२ में, दीर्घदर्शी विचारों का शुभ फल है। बम्बई में "पाचार्य" पद से विभूषित किये गये। आपने कई पाठशालाएं, कन्याशालाएं एवं लायन । ___प्राचार्य श्री देवगुप्त सूरीश्वरजी रियाँ खुलवाई । आप न्याय, धर्मशास्त्र एक व्याकरण आपका प्रसिद्ध नाम मुनि ज्ञानसुन्दरजी था। जीवन का एक एक क्षण जिन्ह स संबन्धी के अच्छे ज्ञाता थे। खरतर गच्छ के आचार्य थे। शोध खोज हेतु पठन पाठन और लेखन ही में हो श्री प्राचार्य सागरानन्द सारजी व्यतीत किया था। जब भी जाइये उन्हें कुछ न कुछ आपका जन्म कपडयन्ज निवासी प्रसिद्ध धार्मिक पढ़ते या लिखते हो पाइयेगा । कभी व्यर्थ के गप्पों में श्रीमंत सेठ मगनलाल गाँधी के गृह में सम्वत् १९३१ वे नहीं बैठे, न किसी सांप्रदायिक प्रपंचों में पड़े। में हुआ। आपके बड़े भ्राता मणिलाल गाँधी के महान ज्ञानवान एवं प्रतिभावान गुणज्ञ साधु होते साथ आपने धार्मिक शिक्षा प्राप्त की। प्रथम आप हुए भी स्वप्रतिष्ठा से सदा दूर रहकर मात्र जैन साहित्य के भ्राता ने दीक्षा ग्रहण की एक उनका मणिविनय सर्जन और प्राचीन शोध खाज में हो आप लोन रहे। Shree Sudhamaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034877
Book TitleJain Shraman Sangh ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain
PublisherJain Sahitya Mandir
Publication Year1959
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size133 MB
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