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________________ महाप्रभाविक जैनाचार्य HINDIIO HD DIHIDAI HIROIRIDIHD ID ll ID RIMINSIDAGIUDDHindlila HD-Dilitilpo HDainila रुपये दिये तथा अन्य सन्जनों की द्रव्य हायता से हैं पर हर्ष है कि दोनों हो ओर के मुनिवरों में पूज्य भव्य धर्मशाला बनी। एकसौमनुष्यों ने पूर्ण ब्रह्म- श्री मोहनलालजी म. सा. के प्रति अद्यावधि अत्यचर्य व्रत अंगीकार किया और करीब चार हजार धिक श्रद्धा पूर्ण पूज्य भाव हैं। मनुष्यों ने पर स्त्री का त्याग किया। __ आप श्री के उपदेश व प्रयत्न से हुए मुख्य २ ___ सं० १६४६ में भजीमगंज निवासी रायबहादुर कार्य-१ बाबू पन्नालालजी पूरनचन्दजी द्वारा बम्बई घनपतसिंहजी दूगड़ द्वारा निर्मापित शत्रुजय तलेटी तथा अन्यत्र स्थापित बम्बई जैन हॉईस्कूल, जैन डिस्पेके मन्दिर को अंजनशलाका आपने की । १६५२ में नसरी, जैन मन्दिर और पालीताना की जैन धर्मशाला गुलालवाड़ी में ऋषभदेवजी व वासुपूज्यजी की मूतियां आपही के उपदेशों का फल है। प्रतिष्ठापित कराई । लालबाग में एक भव्य उपाश्रय २ बम्बई में सूरत निवासी जौहरी भाईचन्द भो तभी बना। तलकचन्द ने ७५ हजार से एक विशाल धर्मशाला ___ जैनधर्म की प्रभावना हेतु आप श्री द्वारा अनेकों बनवाई । कार्य हुए हैं जो एक अन्य पुस्तक रूप में ही प्रकट ३ बाब अमीचन्द पन्नालालजी की ओर से बालकरना संभव है । संक्षेप में यहा कह कर देना पयाप्त केश्वर जैन मन्दिर और उपाश्रय बना । होगा कि अहमदाबाद से बम्बई तक का क्षेत्र आपके ४ एलफिन्स्टन रोड स्टेशन के पास गोकुलभाई उपकारों से सदा उपकृत रहेगा। . मूलचन्द जैन होस्टल की स्थापना । ___ गुजरात के बिहार काल में आप श्री का सम्पर्क मूल ५ मूरत में नमुभाई की बाड़ी में जैन उपाश्रय । विशेष रूप से तपागच्छीय समुदाय से ही रहा अतःआप श्री यही किया पानने लगे थे। किन्तु आपने अपने ६ सूरत जैन संघ द्वारा श्री हर्षमुनिजी को गणी शिष्य समुदाय को स्वतंत्रता दी कि वे जो भी मान्यता पद प्रदान के अवसर पर १ लाख रुपया का जिर्णोद्धार मानना चाहें खुशी से मानें। खरतर गच्छ के एक फंड हुआ। शिष्ट मंडल के आग्रह एक आपने अपने प्रमुख शिष्य ७ सूरत में जैन भोजनशाला जो आजतक चालू पन्यासजी श्री जस मुनिजी को जो उस समय जोधपुर है। में थे, आज्ञापत्र लिखा कि आज से तुम अपने शिष्य कसरत का श्री मोहनलालजी जैन ज्ञान भंडार, समुदाय सहित अपने मूल खरतर गच्छ की क्रियाए हीराचन्द मोतीचन्द जैन कन्या पाठशाला, मोहनलाल ही पालन करो। इस प्राज्ञा को उन्होंने शिरोधार्य किया जो जैन उपाश्रय । और आपका शिष्य समुदाय आजतक खरतर गच्छ की वापी, बगवाड़ा, पारडी. बलसाड दहाणु किया करता है । इस प्रकार पूज्य श्री मोहनलालजी धोलवड़ बोरडी, फणसा, नवसारो, बिल्नीमौरा, की शिष्य परम्परा में तपा और खरतर दोनों ही क्रिया- कतार गांव श्रादि में जैन मन्दिर व उपाश्रय तथा मों के पालन कर्ता मुनिवर वर्तमान तक चले आरहे धर्मशालाए। Shree Sudhammaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034877
Book TitleJain Shraman Sangh ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain
PublisherJain Sahitya Mandir
Publication Year1959
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size133 MB
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