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________________ महाप्रभाविक जैनाचार्य HISTOHDFULDKIO HD INTEND Oil ID-COLAI TRISADICHINo olitD HISTLID RIDORI SINHIND-Onli-kisoulflPHi> DINDAligenti-ollrkili>rolie.aipom है। आपका अत्यधिक श्रम के कारण वि० सं० १६६२ एक अपूर्वा हलचल पैदा की थी। सं० १६६३ में पोष मास में स्वर्गवास हुआ। भापके शिष्य सिद्धांत आपने भागवती दीक्षा ग्रहण की। सं० १६६४ की महोदघि महा महापाध्याय प्रेम सूरीश्वरजी पट्टधर सावण वदी १४ के दिन बनारस में काशी नरेश के सभापतित्व में अनेकों बंगाली तथा गुजराती एवं श्री विजयधर्म सूरीश्वरजी स्थानीय विद्वान तथा श्रीमतों की उपस्थिति में पाप श्री आचार्य विजयधर्मसरिजी-आप अन्तराष्ट्रीय "शास्त्र विशारद' तथा 'जनाचार्य' की पदवी से कीर्ति के प्राचार्य थे। आपका जन्म सं० १९२४ में विभूषित किये गये । इस पदवी का समर्थन भारत के बीसा श्रीमाली जाति के श्रीमंत सेठ रामचन्द भाई अतिरिक्त विदेशी विद्वान डाक्टर हरमन जेकोबी, के यहाँ हुआ था। उस समय आपका नाम मूलचन्द प्रोफेसर जहनस हर्टल डॉबलेन ने मुक्त कंठ से किया भाई रखा गया था। बाल्यकाल में श्राप पढ़ने लिखने था। आपका कई विदेशी विद्वानों से स्नेह था । आपके से बड़े घबराते थे । अतः आपके पिताजी ने आपको र शिष्य आचार्य श्री इन्द्रविजयजी, न्यायतीर्थ मंगल अपने साथ दुकान पर बैठाना शुरू किया यहाँ आप र e विजयजी, मुनि विद्याविजयजी न्यायतीर्थ, न्यायसट्टा और जुवे में लीन हो गये। जब इन विषयों विजयजी न्यायतीर्थ, हेमांशुविजयजी श्रादि है। आप से आपका मन फिरा तो आपने सं. १६४३ को पैशाख सब प्रखर विद्वान एवं अनेकों ग्रन्थों के रचयिता हैं। वदी ५ को मुनि वृद्धिचन्दजी महाराज से दीक्षा ग्रहण पूज्य श्री मोहनलालजी महाराज की, और आपका नाम धर्मविजयजी रक्खा गया। खरतर गच्छ विभूषण जैन शासन प्रभावक बम्बई धीरे २ अ.पसे गुरु से अनेकों शास्त्रों का अध्ययन क्षेत्र के महा मान्य धर्म गुरु जगत्पूज्य क्रियोद्धारक किया। आपने संस्कृत का उच्च ज्ञान देने के हेतु श्री मोहनलालजी महाराज का जन्म मथुग से २० बनारम में "शो विजय जेन पाठशाला" और मील दूर चाँदपुर नामक ग्राम में उच्च ब्राह्मण कुल में "हेमचन्द्राचार्य जैन पुस्तकालय" की स्थापना की। वि० सं० १८८७ शैशाख कृष्णा ६ के दिन हुआ था। आपने विहार, बनारस, इलाहाबाद, कलकत्ता, तथा पिता का नाम बादरमलजी तथा माता का नाम बंगाल, गुजरात, गोडवाड़ आदि अनेको प्रान्तों में सुन्दरदेवी था। चातुर्मास कर अपने निष्पक्षपात तथा प्रखर व्याख्यानों एक बार बादरमलजी ने स्वप्न देखा कि वे सोने द्वारा जैनधर्म की बड़ी प्रभावना की। आपके कलकत्ता की थाल में भरा हु प्रा दूधपाक किसी जैनयतिजी को के चातुर्मास में जैन व जैन श्रीमंत, अनेकों रईस देरहे है। वे स्वप्न शास्त्र के ज्ञाता थे अतः शीघ्र एवं विद्वानों ने आपके उपदेशों से जैन धर्म अंगीकार समझ गये कि यह पुत्र किसी जैनति के पास दीक्षित का था । इलाहाबाद के कुभोत्सव के समय जगन्नाथ- होगा। उनके परिवार का नागौर के यति श्री रूपचन्द पुरी के श्रीमत् शंकराचार्य के सभापतित्व में प्रापके जी से पुराना गहरा सम्प. था। एक बार कार्य वशात् उदार भावों से परिपूरित प्रखर भाषण ने जनता में इनका नागौर जाना हुआ। साथ में बालक मोहन का Shree Sudhamaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034877
Book TitleJain Shraman Sangh ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain
PublisherJain Sahitya Mandir
Publication Year1959
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size133 MB
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