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________________ ७४ जैन श्रमण संघ का इतिहास INDI A N D RANIHINDali-mp-ATI AIIOS-alin INo dilhuto dilli tub HINDICUIND OIRID O R CHII विजय' नाटक लिखा। बालचन्दगणि ने मानमुद्रा नेमिचन्दश्रेष्टी-इन्होंने 'सट्ठिसय' नामक प्राथ भंजन नाटक और 'स्नातस्या' स्तुति लिखी । रामभद्र प्राकृत में रचा । 'उपदेश रसायन' और 'द्वादशकुलक (देवसरि संतानीय जयप्रभसूरि के शिष्य ) ने इसी पर विवरण लिखे, नेमिचन्द इन्होंने प्रवचन सारोद्धार समय "प्रबुद्ध रोहिणेय' नाटक लिखा। की विषमपद व्याख्या टीका, 'शतक कर्मग्र'थ' पर राजा अजयपाल के जैनमन्त्री यशःपाल ने 'मोह टिप्पनक और कर्मस्तव पर भी टिप्पनक लिखे। पराजय' नाटक लिखा । प्राचार्य मल्लवादी ने 'धर्मों तिलकाचार्य--इ.होंने जीतकल्प वृत्ति, सम्यकत्व त्तर टिप्पनक' नामक दार्शानिक टीका ग्रन्थ लिखा । प्रकरण की टीका (पूर्ण की ), आवश्यनियुक्ति, रतप्रभसूरी:-ये प्रसिद्धवादी वादीदेवसूरि के शिष्य लघुवृत्ति, दशवैकालिक टीका, श्रावक प्रायश्चित्तथे। इनकी सर्वोत्कृष्ट रचना 'स्याद्वादरत्नाकरावतारिका' समाचारी, पोषध प्राश्रितसमाचारी, वंदनकप्रत्याख्यान है जो स्याद्वाद रत्नाकर में प्रवेश करने के लिए महा लए सहा- लघुवृत्ति, श्रावकातिकमणसत्र लघुवृत्ति, और पाक्षिक यक रूप में लिखी। इसमें तनी सुन्दर भाषा में न्याय सूत्रावचूरि ग्रंथ लिखे हैं। का शुष्क विषय प्रतिपादित किया गया है कि पढ़ते २ । संस्कृत साहित्य में इनका बहुत ऊँचा स्थान है। काव्य का आनन्द आता है । स्याद्वाद रत्नाकर की इनके प्रथों की कीर्ति जनसमाज में ही अपितु ब्राह्मण अपेक्षा 'अवतारिका' का प्रचलन अधिक हुआ। समाज में भी प्रख्यात है। इनके बाल भारत' और इन्होंने प्राकृत भाषा में नेमिनाथ चरित्र सं० १२३३ कवि कल्पलता नामक प्रथ ब्राह्मण समाज में विशेष में लिखा। १२३८ में धर्मदास कृत उपदेशमाला पर प्रख्यात थे। दोही वृत्ति लिखी। महेश्वरसरि (वादीदेवसूरि के शिष्य) ने पाक्षिक बालचन्द्रसूरिः- इन्होंने वस्तुपाल की प्रशसा में सप्पति पर सुविप्रबोधिनी टीका लिखी। सामप्रभसरि वसन्तःवलास नामक महाकाव्य की रचना की। ने 'कुमारपाल प्रतिबोध' नामक ग्रन्थ लिखा । हेमप्रभ करुणात्रजायुध नाटक-उपदेश कंदली पर टीका तथा सरि-ने 'प्रश्नोत्तर रत्नमाला' प्रर वृत्ति लिखी। विवेकमंजरी पर टीका भी इनकी रचनाएँ है । जयसिंह परमानन्दसरि (वादिदेवसूरि के प्रशिष्य ) ने खड़न- सूरि ने वस्तुगाल तेज गल प्रशस्तिकाव्य, और हम्मीरमण्डन टिप्पन लिखा । देवभद्र ने प्रमाणप्रकाश और मदमदननाटक लिखा । उदयप्रमसूार ने सुकृतकल्लोश्रयांसचरित्र लिखा। सिद्धसेन ( देवभद के शिष्य ) लिनी, धर्माभ्युदय महाकाव्य, नेमिनाथ चरित्र, आरंभभिद्धी ज्योतिषग्रन्थ ', षडशीति और कमस्तव ने प्रवचन सागेद्धार ( नेमिचन्द कत ) पर तत्वज्ञान पर टिप्पन, उपदेशमाला कर्णिका टीका आदि प्रन्थ विकासिनी टीका, सामाचारी पद्मप्रभ चरित्र और लिख । स्तुतियाँ लिखी। महाकविआसड़-इम महाकवि को कमिसभागार की उपाधि थी। इन्होंने कालिदाम नरचन्द्र सूरि-इन्होंने प्रस्तुपाल के आग्रह से के मेघदूत पर टोका लिखी तथा उपदेश कंदली, 'कयारत्न सागर' अन्थ की रचना की। इनके ग्रन्थ विवेक मंजरी और कतिपय स्तोत्र लिखे । इस प्रकार हैं-प्राकृतदीप का प्रबोध, कथा रत्नसागर, Shree Sudhammaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034877
Book TitleJain Shraman Sangh ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain
PublisherJain Sahitya Mandir
Publication Year1959
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size133 MB
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