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________________ ६६ HINDI HD जैन श्रमण संघ का इतिहास HD HD HD!HD || !!!!!!!!!! सन्मान है। इस नयचक्र पर सिंहक्षमाश्रमण ने १८००० श्लोक प्रमाण विस्तृत टीका लिखी है। ये सिंहक्षमाश्रमण सातवींसदी के विद्वान् माने जाते हैं। मल्लवादी ने सिद्धसेन दिवाकर के सन्मति तर्क की वृत्ति भी लिखी है । श्री हेमचन्द्राचार्य ने सिद्धहेग शब्दानुशासन में 'तार्किक शिरोमणी' के रूप में इनका उल्लेख किया है | प्रभावक चरित्र में उल्लेख किया गया है कि इन्होंने शीलादित्य राजा की सभा में बौद्धों को बाद में पराजित किया था। इस प्रभ्थ में इनका समय वीर निर्वाण सं० ८८४ (वि० सं० ४१४) दिया गया है । चन्द्र महतर: – इन आचार्य ने पंचसंग्रह नामक प्रसिद्ध कर्म विषयक ग्रन्थ की रचना की । तथा इसी प्रन्थ पर ६००० श्लोक प्रमाण टीका रची है । इनका समय वि० छठी शताब्दी है । संघदास क्षमाश्रमणः - इन आचार्य ने वसुदेव हिरडी नामक चरितप्रन्ध प्राकृत भाषा में रभा । श्री संघदास क्षमाश्रमण ने 'पंचकल्प महाभाष्य' नामक आगमिक ग्रन्थ लिखा है । ये प्रसिद्ध भाष्यकार हुए हैं । श्री धर्मसेन गणी इन ग्रन्थों के निर्माण में इनके सहयोगी रहे हैं । जिनभद्र क्षमाश्रमणः — ये श्राचार्य 'भाष्यकार' के रूप में अत्यन्त प्रसिद्ध हैं । इन्होंने विशेषावश्यक भाष्य की रचना की और उसकी टीका भी लिखी है । इन्होंने आगमिक परम्परा पर दृढ़ रहकर भाष्य की रचना की है। आगम परम्परा के महान संरक्षक होने से ये जनवाङ्गमय में श्रागमवादी या सिद्धांतवादी की पदवी से विभूषित और विख्यात हैं । ये आचार्य जैनागमों के रहस्य के अद्वितीय ज्ञाता माता माने Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat जाते थे । इनको “युगप्रधान " का सन्माननीय पद प्राप्त था। जीतकल्पसूत्र, वृहत्संग्रहणी, ब्रहत्क्षेत्र समास और विशेषणवती नामक ग्रन्थ भी इन्हीं आचार्य के द्वारा रचे गये हैं । जैन पट्टावली के आधार पर इनका समय वीर नि० सं० ११४५ (विक्रम सं० ६७५) माना जाता है । मानतु गाचार्य:- ये आचार्य वाणेश्वर के राजा हर्ष के समकालीन हैं । इतिहासवेत्ता गौ० ही० श्रोझाने राजपूताने का इतिहास नामक ग्रन्थ के प्रथमभाग पृष्ठ १४२ पर लिखा है कि- “हषं का 1 राज्याभिषेक वि० सं० ६६४ में हुआ। वह महाप्रत पो और विद्वत्प्रेमी था। जैन विद्वान् मानतुंरंगाचा ये ( भक्तामर स्तोत्र के कर्त्ता ) भी उस राजा समय में हुए ऐसा कथन मिलता है" इन आचार्य ने जैनियाँ के प्रिय ग्रन्थ " भक्तामर स्तोत्र" की रचना की । कोट्याचार्य इन्होंने विशेषावश्यक भाष्य पर टोका की रचना की है । सिद्धसेनगणीः – ये भाचार्यसिंहगणी ( सिंहसूर ) के प्रशिष्य और भास्वामि के शिष्य थे। इन्होंने तत्वार्थ सूत्र पर टीका रची। ये आगम प्रधान विद्वान थे । कोई २ इन्हें देवर्षिगण के समकालीन मानते हैं । पं० सुखन्नालजी ने इन्हीं सिद्धसेन को 'गन्धस्ति' पदविभूषित सिद्ध किया है। जिनदास महतरः- ये आचार्य दिगम्बर सम्प्रदाय में अत्यन्त प्रभावशाली हुए हैं। ये सिद्धसेन दिवाकर की तुलना के आचार्य हैं। सिद्धसेन के सम्बन्ध में लिखते हुए इनके विषय में पहले लिखा जा चुका है। इन्होंने श्राप्तमीमांसा, युकत्यनुशासन, रत्नकरंडश्राव www.umaragyanbhandar.com
SR No.034877
Book TitleJain Shraman Sangh ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain
PublisherJain Sahitya Mandir
Publication Year1959
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size133 MB
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