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________________ ६० -AND-18] जैन श्रमण संघ का इतिहास “मैंने कमलमेर पर्वत, जो समुद्र तल से ३३५३ फुट ऊँचा है; उसके ऊपर एक प्राचीन जैन मंदिर देखा। यह मन्दिर उस समय का है जब मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त के वंशज राजा सम्प्रति मरुदेश का राजा था, उसीने यह जिन मन्दिर बनवाया है । मन्दिर की बांधणी अति प्राचीन और अन्य मान्दरों से बिलकुल भिन्न है । मन्दिर पर्वत पर होने से अब भी सुरक्षित है । सुस्थित, सुप्रतिबद्ध नवें पाट पर उक्त दोनों आचार्य हुए। आचार्य सुप्रतिबद्ध ने उदय गिर पर्वत पर एक करोड़ सूरि मंत्र का जाप किया जिससे उनकी शिष्य परम्परा "कोटिक गच्छ" के नाम से प्रसिद्ध हुई और निप्रभ्थ गच्छ की एक शाखा बनी । आपके समय भी महाराजा खारवेल, महाराजा चेटक, अजात शत्रु, कलिंगाधिपति वृद्धराज आदि कई राजा गण आपके भक्त बने थे आपके समय एक भयंकर दुष्काल पड़ा । कलिंगाधिपति राजा खारवेल ने इस दुष्काल के प्रभाव से आगमज्ञान को क्षीण होता जान सभी जैन स्थविरों को कुमारी पवंत पर एकत्र किया जिसमें करीब ३०० स्थविर कल्पी साधु तथा ३०० साध्वियां ७०० श्रमणोपासक तथा ७०० श्रमणोपासकाएं एकत्र हुई थीं। कलिंग राज की चिनंति से कई साधु साध्वी मगध मथुरा बंगाल की ओर भी गये । अवशेष दृष्टिवाद का भी संग्रह किया गया । आपके बाद की पाट परम्परा को संख्या बद्ध लिखना विवादस्पद सा है अतः वीर परम्परा के मुख्य २ आचार्यों का ही आगे वर्णन करते हैं । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat श्राचार्य उमास्वाति - आर्य महागिरी के शिष्य बलिसिंह के श्राप सुशिष्य थे । आपने 'जैन तत्वों के प्रकाशनार्थ जैन शासन की ही नहीं भारतीय साहित्य संसार की महान सेवा की है। आचार्य उमास्वाति रचित 'तत्वार्थ सूत्र' जैनधर्म के मर्म को प्रकाशित करने वाला सर्व मान्य ग्रन्थ बना है । श्राचार्य वादिदेव सूरि ने 'स्याद्वाद 'रत्नाकर' में लिखा है । “प्रणयन प्रमीगौस्त्र भवदभरुमा स्वाति वाचक मुख्यै" । इससे स्पस्ट है कि आचार्य उमास्वाति ने महान् “तस्वार्थ सूत्र" के साथ २ जैन तत्वार्थ आदि विषयों पर ५०० प्रन्थों की रचना की थी । आपका समय वीर निर्वाण सं० ३३५ से ३७६ का है । कालिकाचार्य जैन इतिहास में गर्दा भिल्लोच्छेदक तथा पंचमी को होने वाली संवत्सरी को चौथ की करने वाले कालिकाचार्य का विशेष महत्त्व पूर्ण स्थान है । आप धारावास नगर के राजा वीरसिंह के पुत्र तथा भरूच के के राजा बालमित्र के मामा थे। आप आचार्य गुणाकर ( गुण सुन्दर ) सूरिजी के पास दीक्षित हुए और स्कंदिलाचार्य के पूर्व युग प्रधान हुए हैं। आपका मूल नाम श्यामाचार्य है । आपकी बहिन सरस्वति भी आपके साथ दीक्षित हुई थी - वह बड़ी रूपवति थीं। एक बार उज्जैन के राजा गर्दा भिल्लने उसका साध्वी अवस्था में हरण कर लिया। कालिका चार्य ने उसे छुड़ाने के अनेक प्रयत्न किये पर कोई फल नहीं निकला देख आप ईरान देश गये और वहां ६६ राजाओं का एक संगठन बनाकर भारत पर 'चढ़ाई की ! भीषण युद्ध हुआ । गर्दभिल्ल मारागया www.umaragyanbhandar.com
SR No.034877
Book TitleJain Shraman Sangh ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain
PublisherJain Sahitya Mandir
Publication Year1959
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size133 MB
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