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________________ जैन धर्म का प्राचीन इतिहास DIRTINiball nudio AIID HDGIRDOIE1110 DIREBUDANILIBHITHILI ... DOI सम्मिलित हो गई थी । भगवान के गृहस्थ अनुयायियों पाया जाता है।) श्रेणिक का पुत्र राजा कोनिक में मगघराज श्रेणिक, अधिपति चेटक, अवन्तिपति (अजात शत्रु ), उसका पुत्र राजा उदायो, उज्जैनी चण्डप्रद्योत आदि थे। आनन्दा श्रादि वैश्य श्रमणो के राजा चण्टप्रद्योत, पोतनपुर के राजा प्रसन्नचन्द्र पापकों के साय हो साथ शहालपुत्र जैसे कुम्भः बतिभय पट्टन का उदायी राजा आदि मुख्य हैं। कारभी उपासक संघ में सम्मिलित थे। कथा साहित्य परसे यह मालूम होता है कि कम से सबसे आश्चर्य की बात यह है कि भगवान के से कम तेवीस राजाओं ने भगवान महावीर का उपदेश सुन कर उनका धर्म स्वीकार किया और उनके दृढ़ सर्वप्रथम शिष्य ब्राह्मण पण्डित हुए-इन्द्रभूति गौतम । अनुयायी हो गये। जो अपने समय के एक धुरन्धर दार्शनिक, साथ ही ___ जैन सूत्रों में जो भगवान के समवसरण और अग्रणी क्रियावादी ब्राह्मण माने जाते थे वे भगवान धर्म कथा का वणन आता है उससे यह प्रतीत होता के प्रथम शिष्य हुए । गौतम पर भगवान के अप्रतिम है कि राज वर्ग के लोग भगवान के उपदेश को सुनने ज्ञान प्रकाश का और अखएतु तपस्तेज का वह के लिए अत्यधिक उत्सुक रहते थे। बड़े २ प्रतापी विलक्षण प्रभाव पड़ा कि वे अज्ञवाद का पक्ष छोड़कर राजा अपने अन्तः पुर, दरबारी गण और दल वल भगवान क पास चार हजार चार सो ब्राह्मण सहित तीर्थ करों का उपदेश सुनने के लिए जाते विद्वानों के साथ दीक्षित होगये । यह है भगवान के थे। भगवान के उपदेश इतने सचोट होते थे कि उपदेश का पुण्य प्रभाव । अनक राजाओं ने उससे प्रभावित होकर दीक्षा ___ भावान महावीर स्वयं राज कुमार थे। उनके धारण करली थी । मगध देश-भगवान की मातृभूमि पिता सिद्धार्थ प्रतापी राजा थे। माता त्रिशला के अप्रगएण नृपति भावान् के विशेष सम्पर्क में वैशाली के नरेश चेटक की बहन थी। चेटक नरेश १ आये । महाराजा रणक, उनका पुत्र कोणिक और की पुत्री.का विवाह मगध के प्रतापी राजा विम्बसार । __ तत्पुत्र उदायी ये बड़े धर्मक्षक राजा हुए। यह ( श्रेणिक ) के साथ हुआ था। राज परिवारों के परम्परा अशोक वर्धन और सम्प्रति तक चलती रही सम्बन्ध के कारण भी भगवान महावीर का अपने थी। महान सिकन्दर ने जब भारत पर आक्रमण धर्म प्रचार में संभवतः कुछ सहुलियत हुई हो। किया तब नव नन्द वश ने शिशुनाग राजाओं भगवान महावीर के उपदेशों से अनेक नृपति प्रभा- का राज्य ले लिया। इस नन्द वंश के आश्रय में भी वित हुए। उनके अनुयाी नरेशों में-वैसाली महावीर का धर्म विकासित हुआ। इसके बाद नन्दनरेश चेटक-(जो गणसत्तात्मक राज्य के नायक बंश के अन्तिम नन्द के पास से मौर्यवंश के महाथे) कौशाम्बी के राजा शतानिक, मगध नरेश राजाधिराधिराज चन्द्रगुप्त ने राज्य ले लिया तब भी श्रेणिक ( बौद्ध प्रत्यों में जिसे बिम्बिसार भी कहा जैनधर्म का खुव विकास हुआ। भारत के प्रथम गया है । ) जन सूत्रों में भंभासार नाम भी मिलता इतिहास प्रसिद्ध महाराजाधिराज चन्द्रगु जैनधर्माहै। सेणि य नाम तो जैन और बौद्ध दानों प्रन्यों में नुयायी हो गये थे। स्वयं जैन थे। दिगम्बर सम्प्रदाय Shree Sudhamaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034877
Book TitleJain Shraman Sangh ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain
PublisherJain Sahitya Mandir
Publication Year1959
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size133 MB
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