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________________ जैन धर्म का प्राचीन इतिहास anupdIID 110 tita DRDOHIDISORDITION:"CINEMIE HISHIR MI IIlil MailDI IXITHILanu भगवान ऋषभदेव विवाह सम्बन्ध भी हो जाता था। सच तो यह है अनादिकालीन जगत् के जिस काल से मानत्र कि उस समय के मनुष्य बड़े भद्र स्वभावी और का सभ्यता भरा व्यवहारिक स्वरूप ज्ञात होता है पवित्र विचारों के होते थे। वहीं से 'आदि युग' माना गया है। किन्तु यह निर्मलता धीरे धीरे समाप्त होने इस 'आदि युग' के सर्व प्रथम शिक्षक जिन्होंने लगी थी, कल्प व क्षों ने भी अब मनः इच्छित फल मानव को मानवीय सभ्यता और व्यवहार की शिक्षा देना बंद कर दिया था-प्रकृति का वैभव क्षीण होने दी वे हैं 'आदिनाथ भगवान श्री ऋषभदेवजी"। लगा था । युगालियों में परस्पर कलह और असंतोप __भगवान ऋषभदेव के काल में न गांव बसे थे न बढ़ने लगा। ऐसे समय भगवान रिषभदेव ने जगत नगर । न खेती होती थी न और कोई धंधा । वह को मानव सभ्यता का नया पाठ पढ़ाया और उन्हें काल अवसर्पिणी काल के तीसरे पारे 'सुखमा दुखम' आस, मसि, कृषि प्रादि जीवनोपयोगी समस्त का समय था । 'कल्प वन' युग का अंतिम काल था शिक्षाए दी खेती द्वारा अन्न उत्पन्न करना, वस्त्र वह । यानि मनोवांछित पदार्थ प्रदान करने गले बनाil, भोजन बनाना, बर्तन बनाना, घर बनाना, कल्प वृक्षों का सुख धोरे २ लोप होने जा रहा था। आदि सभी कार्य सीखा कर स्वावलम्बी बनाने का अतः अब मानव को पुरुषार्थ का भान करना महान् प्रयत्न किया। युगलियों में जब आपस में था और इसे श्रमशील बनने का मार्ग बतानाशा। विशेष झगड़े होने लगे तो जन नायक के में यह सर्व जगत् के आद्य गुरु "भगवान ऋषभदेव" ने । र 'राजा' इनाने का निश्चय किया गया। भगवान किया। वे ही तत्कालीन कल्प वृक्षों के सुख में रिषभदव क नेतृत्व में हो सर्व प्रथम विनीता नामक अनाथ बनने जा रहे हैं जगत् के मार्ग दर्शक और नगरा बसाई गई जो आगे जाकर अयोध्या के नाम रक्षक बने इसी से संसार में 'आदिनाथ भगवान से प्रसिद्ध हुई । नाभिराजा को सर्व प्रथम 'राजा' के नाम से वे सदा काल सुविख्यात हैं और रहेंगे। माना गया। भगवान रिषभदेव के सम्बन्ध में वैदिक धर्म इस प्रकार भगवान रिषभदेव ने भोग भूमि को अन्य श्री मद् भागवत के पंचम और बारहवें स्कघ में कर्म भूमि में परिणित किया। स्त्रियों को चौसठ स्तुति पूर्ण विशेष उल्लेख है। और पुरुषों को वहत्तर कला निधान बनाया । अक्षर ___ भगवान रिषभदेव के काल को जैन धर्म में ज्ञान और लिपी विज्ञान की शिक्षा दी। इस प्रकार यालिया काल' भी कहते हैं। पुराणों में आये भगवान ने असि (शस्त्र) मसि (लेखन) और कृषि 'यम-यमी' के संवाद से भी इस जेन मान्यता का (खती) की सर्व प्रथम शिक्षा देकर इस जगत् को समर्थन मिलता है। महान संकट से उबार लिया। प्रायः एक बालक और एक बालिका जुड़वां ही एक ही माता पिता की संतान के बीच होने उत्पन्न होते थे और उनके वयस्क होने पर परस्पर वाले विवाह (युगालिया धर्म) का भी भगवान ने Tons Shree Sudhammaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034877
Book TitleJain Shraman Sangh ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain
PublisherJain Sahitya Mandir
Publication Year1959
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size133 MB
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