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________________ जैन श्रमण संघ का इतिहास ३० DADup UID ID all IIMSCITUIIIIIDIIIIIIIIII H INDI DIMilitab IIIMIDDITIELITD-CITHIBillm भगवान महावीर की उपयुक्त वाणी को आचार्य का निरोध करना भी आवश्यक है। वह जितेन्द्रिय श्री शुभचन्द्र भी प्रकारान्तर से दुहरा रहे हैं- साधक ही पूर्ण ब्रह्मचर्य पाल सकता है, जो ब्रह्मचर्य एकमेव व्रतं श्लाध्यं, के नाश करने वाले उत्तेजक पदार्थों के खाने, ब्रह्मचर्य जगत्त्रये । कामोद्दीपक दृश्यों के देखने, और इस प्रकार की यद्-विशुद्धि समापन्नाः, वार्ताओं के सुनने तथा ऐसे गन्दे विचारों को मन पूज्यन्ते पूजितैरपि ॥ में लाने से भी बचता है। -ज्ञानार्णव आचार्य शुभचन्द्र ब्रह्मचर्य की साधना के लिए बह्मचर्य की साधना के लिए काम के वेग को निम्नलिखित दश प्रकार के मैथुन से विरत होने का रोकना होता है। यह वेग बड़ा ही भयंकर है। जब उपदेश देते हैंआता है तो दड़ी से बड़ी शक्तियाँ भी लाचार हो (१) शरीर का अनुचित संस्कार अर्थात् कामोत्तेजक जाती हैं । मनुष्य जब वासना के हाथ का खिलौना श्रृगार आदि करना। बनता है तो बड़ी दयनीय स्थिति में पहुँच जाता है। (२) पौष्टिक एवं उत्तेजक रसों का सेवन करना । वह अपनेपन का कुछ भी भान नहीं रखता, एक (३) वासनामय नृत्य और गीत आदि देखना, सुनना। प्रकार से पागल-सा हो जाता है। धन्य हैं वे महा- (४) स्त्री के साथ संसर्ग =घनिष्ठ परिचय रखना । पुरुष, जो इस वेग पर नियंत्रण रखते हैं और मन (५) स्त्री सम्बन्धी संकल्प रखना। को अपना दास बना कर रखते हैं। महाभारत में (६) स्त्री के मुख, स्तन आदि अंग-उपांग देखना । व्यास की वाणी है कि जो पुरुष वाणी के वेग को, (७) स्त्री के अंग दर्शन संबंधी संस्कार मन में रखना। मन के वेग को, क्रोध के वेग को, काम करने की (८) पूर्व भोगे हुए काम भोगों का स्मरण करना । इच्छा के वेग को, उदर (कामवासना) के वेग को (६) भविष्य के काम भोगों की चिन्ता करना । रोकता है, उसको मैं बह्मवेत्ता मुनि सगझता हूँ, (१०) परस्पर रतिकर्म अर्थात् सम्भोग करना । बाजो वेगं, मनसः क्रोध-वेगं, जैन भिक्षु उक्त सब प्रकार के मैथनों का पूर्ण ___ विधित्सा वेगमुदरोपस्थ-वेगम् । त्यागी होता है । वह मन, वचन और शरीर से न एरान वेगान् यो विपहेदुदीर्णास स्वयं मथुन का सेवन करता है, न दूसरों से सेवन तं मन्ये अहंब्राह्माणं वै मुनि च ॥ करवाता है, और न अनुमोदन ही करता है। जैन (महाभ शान्ति० २६६ | १४) भिक्षु एक दिन की जन्मी हुई बच्ची का भी स्पश नहीं ब्रह्मचर्य का अर्थ केवल सम्भोग में बीर्य का कर सकता । उस के स्थान पर रात्रि को कोई भी स्त्रा नाश न करते हुए उपस्थ इन्द्रिय का संयम रखना नहीं रह सकती । भिक्षु की माता और बहन को भी ही नहीं है। ब्रह्मचर्य काक्षेत्र बहुत व्यापक क्षेत्र है। रात्रि में रहने का अधिकार नहीं है । जिस मकान में अतः उपथेन्द्रिय के संयम के साथ-साथ अन्य इन्द्रियों स्त्री के चित्र हों उसमें भी भिक्ष नहीं रह सकता है। Shree Sudhammaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034877
Book TitleJain Shraman Sangh ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain
PublisherJain Sahitya Mandir
Publication Year1959
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size133 MB
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