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श्रमण धम
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देवाधिदेव श्रमण भगवन्त महावीर ने उपर्युक्त है। इसी प्रकार तीन मास की दीक्षा वाला असुरकुमार पूर्ण त्याग मार्ग पर चलने वाले मुनियों को मेरु पर्वत देवों के सुख को, चार मास की दीक्षा ग्रह, नक्षत्र एवं के समान अप्रकंप, समुद्र के समान गम्भीर, चन्द्रमा ताराओं के सुख को, पाँच मास की दीक्षा वाला के समान शीतल, सूर्य के समान तेजस्वी और पृथ्वी ज्योतिष्क देव जाति के इन्द्र चन्द्र एवं सूर्य के सुख के समान सर्वसह कहा है। सूत्रकृतांग सूत्र के द्वितीय को, छः मास की दीक्षा वाला सौधर्म एवं ईशान श्रु तस्कन्धान्तर्गत दूसरे क्रिया स्थान नामक अध्ययन देवलोक के सुख को, सात मास को दीक्षा वाला में मुनि-जीवन सम्बन्धी उपमानों की यह लम्बी सनत्कुमार एव माहेन्द्र देवों के सुख को, आठ मास श्रृंखला, आज भी हर कोई जिज्ञासु देख सकता है। की दीक्षा वाला ब्रह्मलोक एवं लांतक देवों के सुख का, इसो अध्ययन के अन्त में भगवान ने मुनि जीवन को नवमास की दीक्षा वाला आनन्त एवं प्राणत देवों के एकान्त पण्डित, आर्य, एकान्तसम्यक, सुमुनि एका सब सुख को, दश मास की दीक्षा वाला आरण एवं अच्युत दुःखों से मुक्त होने का मागे बताया है । 'एस ठाणे देवों के सुख को, ग्यारह मास की दोक्षा वाला नव बायरिए जाव सव्वदुःखपहीण मग्गे एगंतसम्मे प्रवेयक देवों के सुख को तया बारह मास की दीक्षा सुसाहू ।'
वाला श्रमण अनुत्तरोषपातिक देवों के सुख को भगवती-सूत्र में पाँच प्रकार के देवों का वर्णन अतिक्रमण कर जाता है।" -भग० १४, ६ । है। वहाँ भगवान महावीर ने गौतम गणवर के प्रश्न पाठक देख सकते हैं-भगवान महावीर की दृष्टि का समाधान करते हुए मुनियों को साक्षात् भगवान् में साधुजीवन का कितना बड़ा महत्व है ? बारह एवं धर्मदेव कहा है। वस्तुतः मुनि, धर्म का जीता- महीने की कोई विराट साधना होती है ? परन्तु यह जागता देवता ही है । 'गोयमा ! जे इमे अणगारा शुदकाल की साधना भी यदि सच्चे हृदय से की भगवन्तों इरियासमिया..... "जाव गुत्तवभयारी, से जाय तो उसका आनन्द विश्व के स्वर्गीय सुख तेण?ण एवं वुच्चइ धम्मदेवा।'
साम्राज्य से बढ़ कर होता है। सर्व श्रेष्ठ अनुत्तरो-भग० १२ श० उ०। पपातिक देव भी उसके समक्ष हतप्रभ, निस्तेज एवं भगवती-सूत्र के १४ वे शतक में भगवान महावीर निम्न हैं । साधुता का दभ कुछ और है, और सच्चे ने साधुजीवन के अखण्ड आनन्द का उपमा के द्वारा साधुत्व का जीवन कुछ और ! सच्चा साधु भूमण्डल एक बहुत ही सुन्दर चित्र उपस्थित किया है । गणधर पर साक्षात् भगवत्स्वरूप स्थिति में विचरण गौतम को सम्बोधित करते हुए भगवान कह रहे हैं- करता है। स्वर्ग के देवता भी उस भगवदारमा के "हे गौतम ! एक मास की दीक्षा वाला श्रमण निन्थ चरणों की धूल की मस्तक पर लगाने के लिए तरसते वानव्यन्तर देवों के सुख को अतिक्रमण कर जाता है। वैष्णव कवि नरसी महता कहता हैहै। दो मास की दीक्षा वाला नागकुमार आदि आपा मार जगत में बैठे नहिं किसी से काम, भवनवासी देवों के सुम्ब को अतिक्रमण कर जाता उनमें तो कुछ अन्तर नाही, संत कहा चाहे राम,
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