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________________ जैन श्रमण सौरभ २१५ बाल ब्रह्मचारिणी श्री अमंगश्री जी म० आपका जन्म सं० १९४० प्रथम भाद्रपद शुक्ला १३ को जोधपुर में हुआ। आपके पिता मुंसफी - सूरजराजजी भण्डारी और माता श्री इचरजबाई थे । आपने लगभग १३ वर्ष की आयु में ही आषाढ़ सुद १० सं० १६६० को स्व० प्रवर्तिनी श्री सुवर्णश्रीजी के पास दीक्षा प्रहण करली। आपका दीक्षा नाम "उमंग श्री" रखा गया । आप खरतरगच्छीय समुदाय की आर्यारत्न श्री कनकश्रीजी की शिष्या बन्मे । साहित्य, काव्य, जैनागम एवं न्याय विषय में आपका अध्ययन गहन है । आपने अपने संरक्षण में कई ग्रन्थों को प्रकाशित कराया है जिनमें रूपसेन चरित्र, सरस्वती स्तोत्र पंच प्रतिक्रमण सूत्र आदि प्रमुख है । आपने अनेक प्रमुख नगरों में चातुर्मास किये हैं और सर्वदा अपने उच्च विचारों से समाज को धार्मिक एवं आध्यात्मिक मार्ग दर्शन दिया है। टोंक तथा रावतजी का पीपल्या, भानपुरा आदि में आपकी सद् प्रेरणा से दीक्षा उजमणे, पूजाएँ भोलोजी, जीर्णोद्धार एवं प्रतिष्ठादि के कार्य हुए हैं । आपकी प्रवज्या दात्री गुरुणी स्व. सुवर्णश्रोजी थीं । आप खरतरगच्छीय समुदाय की मुखिया पुण्य श्रीजी म० खा० की शिष्या श्री कनक श्रीजी म० सा० की शिष्या है । आपने साहित्य, काव्य, एवं न्याय विषयों में कई परीक्षाएं पास की हैं। आपने अपने संरक्षण में कई ग्रन्थों को प्रकाशित कराया है जिनमें रूपसेन चरित, सरस्वती स्तोत्र पंच प्रतिक्रमण सूत्र आदि प्रमुख हैं। आपने अनेक प्रमुख नगरों में चातुर्मास किए हैं और सवदा अपने उच्च विचारों से समाज का धार्मिक एवं अध्यात्मिक मार्ग दर्शन किया है। टोंक तथा रावतजी का पिपल्बा में आपकी सप्रेरणा से दीक्षा, जोर्णोद्धार एवं प्रतीष्ठा के कार्य हुए हैं। भानपुरा में भी आपने प्रतिष्ठा एवं जीर्णोद्वार कराया है | अनेक स्थानों पर उनमनें पूजाप, घोलोजी, आदि आपकी प्ररेखा से हुए हैं। महाराज श्री घन बुद्ध है और टोंक राजस्थान में स्थविर विराज रहे है। महाराज श्री अब वृद्ध है और टोंक राजस्थान में विराज रहे हैं । श्रीमती मेघश्रीजी महाराज सांसारिक नाम "धाकुबाई" । जन्म सं० १६४५ वाल ब्रह्मचारिणी श्री कल्याणश्रीजी म. मार्गशीर्ष कृष्णा २ जन्म स्थान फलोदी । पिता मोि आपका जन्म संवत् १६५२ पौष सुद १० को जोधपुर में हुआ | आपके पिता मुसफी सूरजराजजी भारी थे और माता का नाम इचरनबाई था । आपमें बाल्यावस्था से ही धर्म के प्रति अतीव श्रद्धा एवं निष्ठा थी जिसने भागे चलकर वैराग्य का रूप धारण कर लिया । लालजी बच्छावत माता रूपकंवरबाई । जाति ओसवाल गोत्र नाहर | दीक्षा १६६० वैशाख कृष्ण १० फलौदी । परम पूज्य गुरुवर्या विदुषी विमला श्रीजी म० स० की सुशिष्या हैं। आप ज्ञान ध्यान तपश्चर्चा में तल्लीन हैं । सेवाभावी जीवन है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat आपने ६ वर्ष की आयु में ही सं० १६६२ मार्ग शुक्ल पक्ष में दीक्षा ग्रहण करली। आपका नाम "कल्याण श्री” रखा गया । शीर्ष www.umaragyanbhandar.com
SR No.034877
Book TitleJain Shraman Sangh ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain
PublisherJain Sahitya Mandir
Publication Year1959
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size133 MB
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