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________________ २०४ जैन श्रमण-संघ का इतिहास पं० रत्न श्री महेन्द्रकुमारजी महाराज ... इसी प्रकार सं० २०४ में चरखी दादरी में भी "श्री महावीर जैन पब्लिक लायब्ररी" की स्थापना - आपका जन्म संवत् १९८० के लगभग जम्बु कराई। (कश्मीर) राज्य के "भलान्द प्राम" में हुआ। आप सं० २०१५ में भिवानी में एक मास कल्प करके जाति से सारस्वत ब्राह्मण है। पिता का नाम श्री महावीर जैन कन्या पाठशाला" की स्थापना सुन्दरलालजी शर्मा तथा माता का नाम श्रीमति । कराई। जिसमें ८० बालिकाएं धर्म शिक्षा एवं व्यवचमेलीदेवी है। श्राप सात भाई हैं। जिनमें से दो हारिक ज्ञान का लाभ उठा रही है। भाईयों ने दीक्षा ग्रहण की है। आपके बड़े भाई श्री आप श्री की ही कृपा से हांसी में श्री जैन कुमार राजेन्द्रमुनिजी म० ने सं० १६६३ में हुशियारपुर में सभा और श्री महावीर जैन वाचनालय स्थापित हुआ। जैनाचार्य पंजाब केशरी श्री काशीरामजी म. के पास तथा स्थानक की लायब्ररी का पुनरुद्धार किया। तथा ओपने १६६४ में भादवमास में हांसी हिसार) भविष्य में भी आप से समाजोन्नति हेतु अनेक , में पं० रत्न श्री शुक्ल चन्द्रजी म० के सानिध्य में आशाए हैं। भगवति दीक्षा ग्रहण की। दीक्षा के पश्चात् श्राप द्वयभ्राताओंने शास्त्रार्थध्ययन प्रारम्भ किया। स्व. श्री रामसिंहजी महाराज संस्कृत प्राकृत आदि भाषा के आप अच्छे विद्वान हैं। संसारी नाम रामलालजो । जन्म सं. १६३६ आषाढ़ एकान्तवास के श्राप प्रारम्भिक काल से ही विशेष मास । जसरा गांव ( बीकानेर ) पिता दीपचन्दजी । प्रेमी हैं। अतः अब भी आप अधिकतर एकान्त में माता केशरीदेवी। जाति लखेरा। दोक्षा कदवासा स्वाध्याय आदि कार्य में ही समय बिताते हैं । आपकी गांव (वेंगु के समीप) सं० १६५६ माह शु० सप्तमी । प्रकृति शांत नम्र तथा सौम्य है। आपके शिष्य श्री गुरु का नाम परमप्रतापी श्री मोहरसिंहजो महाराज । सुमनकुमारजी हैं। आपने वुढलाढ़ा, वैसी, रिठल, आदि गांवों में सर्व श्री सुमनकुमारजी महाराज प्रथम धर्म प्रचार किया। आपका सं० २०१५ आसोज वदी ३ के दिन स्वर्ग वास हुआ। आपका जन्म सं० १९६२ के लगभग बसन्त पंचमी को बीकानेर राज्य के पांच ग्राम" में गोदाग श्री नौबतरायजी महाराज गोत्रीय जाट वंश में हुथा। आपके पिता का नाम ___ संसारीनाम श्री नौबतरायजी। जन्म तीतरवाड़ा भीमराय था। संयमपर्याय से पूर्व आपका नाम श्री नगर (जिला मुजफ्फर नगर ) में सं० १६६४ चैत गिरधारीलाल था। आपने हिन्दी में प्रभाकर तक की सुदी ६ । पिता का नाम श्री सन्तलालजी! माता योग्यता प्राप्त की है । तथा संस्कृत और प्राकृत भाषा निहालीदेवी । जाति छिपां टांक क्षत्री। दीक्षा हांसी का भी अच्छा ज्ञानार्जन किया है। में सं० १९८० माघ सुदि १० । गुरु का नाम गणावसं० २००७ ( म० १६५) में साढौरा नगर में च्छेदक श्री रामसिंहजी महाराज । सहारनपुर के आश्विन सुदी १३ को कविरत्न पं. श्री हर्पचन्द्रजी इलाके में सर्व प्रथम प्रापने ही उपकार किया । आपने म० के चरणों में भगवती दिक्षा ली। और पं० रत्न अनेक कष्टों को सहकर कई नये जैन बनाये। कई श्री महेन्द्रकुमारजी के शिष्य बने । आपने रायकोट लोगों को मांस, शराब, जुमा, इत्यादि व्यसनों के में एक विशाल "महावीर जैन पुस्तकालय" की सौगन्ध भी कराये। आप बाल ब्रह्मचारी हैं। आपके स्थापना कराई जो इस समय समृद्ध एवं सम्पत्र है। प्रीतमचन्दजी तथा उत्तमचन्दजी नामक २ शिष्य हैं। रा Shree Sudhamaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034877
Book TitleJain Shraman Sangh ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain
PublisherJain Sahitya Mandir
Publication Year1959
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size133 MB
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