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जैन श्रमण संघ का इतिहास
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वइसो कम्मुणा होइ,
"निर्गतो ग्रन्थाद् निन्थः॥" शुद्दो हवइ कम्मुणा ॥
(-आचार्य हरिभद्र, दश० वृत्ति प्र० अ०) यहां तो महत्व गुणों का है । जन्म जात जाति
अर्थात्-जो ग्रन्थ अर्थात् बाह्य और आम्यन्तर पांति का नहीं यही सब ब्राह्मण एवं श्रमण संस्कृति पारग्रह से रहित है, कुछ भी छिपाकर गांठ बांधकर
नहीं रखता है, वह निम्रन्थ है। के मूल भेद हैं।
___भावान महावीर स्वामी ने सूत्र कृतांग सूत्र में प्राचार्य हरिभद्रसूरि ने दशवैकालिक सूत्र के
श्रमण कहलाने योग्य कौन है इसका विवेचन करतेहुए प्रथम अध्ययायन की तीसरी गाथा की टीका करते
फरमाया है कि:-एत्य वि समणे अणिस्सिए, हुए 'श्रमण' शब्द का अर्थ तपस्वी किया है।
अणियाणे, आदाणं च, अतिवायं च, मुसावायं च, श्राम्यन्तीति श्रमणाः तपस्यन्ती त्यर्थ :।
बहिद्ध च,कोहं च,माएं च,मायं च, लोभं च पिज्जं च अर्थात्-जो अपने ही श्रम से तपः साधना द्वारा दोसं च, इञ्चेवजओ आदाणं अप्पणो पदोसहेऊ, मुक्ति प्राप्त करते हैं वे श्रमण कहलाते हैं। तओ तओ आदाणातो पुव्वं पडिविरते पाणाइवाया
सत्र कतागं सूत्र के प्रथम श्रुत्र स्कधान्तर्गत १६ सिया दंते, दविए वो सट्टकाए समणे ति वच्चे । में गाथा अध्ययन में भगवान महावीर ने साधु के
सूत्र कतांग १।१६।२] माहण (बाह्मण) श्रमण, भिक्षु और निम्रन्थ ऐसे "जो साधक शरीर आदि में आसक्ति नहीं चार नामों का वर्णन किया है।
रखता, किसी भी प्रकार की सांसारिक कामना नहीं इन शब्दों पर महान टीकाकारों ने निम्न प्रकार करता, किसी भी प्राणो की हिंसा नहीं करता, टीकाए की है:
झूठ नहीं बोलता, मैथुन और परिग्रह के "माहणति प्रवृत्तिर्यस्य असौ माहनः ।"
विकार से अपने को दूर रखता है, क्रोध, मान, माया
लोभ, राग द्वष आदि जितने भी 'कर्मादान' और (आचार्य शीलांक, सूत्र कृतांग वृति १-१६)
आत्मा को पतन मागे पर ले जाने वाले कारण हैं अर्थात्-किसी भी प्राणी का हनन नहीं करो, यह
उन सबसे निवृत रहता है, इसी प्रकार जो इन्द्रियों प्रवृत्ति है जिसकी वह माहण है।
का विजेता है, संयमो है, मोक्ष मार्ग का सफल यात्री "यः शास्त्रनीत्या तपसा कर्भ भिनत्ति स भिक्षः।”
है तथा शरीर के मोह ममत्व से रहित है वह श्रमण (आचार्य हरिभद्र सरि दशौकालिक वृत्ति दशम कहलाता है।" अध्ययन)
___ भगवान ने साथ ही उत्तराध्ययन सूत्र में यह भी अर्थात्-जो शास्त्र की नीति के अनुसार तपः फरमाया है किःसाधना के द्वारा कर्म बन्धनों का नाश करता हैं, न वि मुडिएण समणो। वह भिक्षु है।
समयाए समणो होइ॥
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