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________________ १६८ जैन श्रमण संघ का इतिहास डेरा वसी में हुआ । चतुर्मास में ४० हजार की लागत से जैन गर्ल्स हाई स्कूल की बिलडिंग तैयार हुई। सरकार से तीन बीघा जमीन भी दिलवाई। दानवीर ला. पतरामजी ने १६ हजार रु० का स्थानक बना कर भेंट किया । १६५७ का चतुर्मास अबाला शहर में हुआ । सठौरा में आदीश्वर जैन कन्या महाविद्यालय की सहायता के लिए दस हजार रु० दान करवाए। अंबाला छावनी से जहां स्थानकवासी जैन बहुत कम हैं एक आलीशान स्थानक तैयार करवा देना म० श्री के अथक परिश्रम का ही फल है । पंजाब की राजधानी चण्डीगढ़ में का फल है जो आज यहां एक रमणीक स्थानक बन कर तैयार हो गया है। महाराज श्री का शिक्षा के लिए ही बना है। इन्हें हर समय समाज सुधार की ही धुन लगी रहती है। महाराज श्री ने एक ऐसे महत्वपूर्ण कार्य को अपने हाथों में लिया है जिसका प्रभाव हमारी समाज पर अवश्य पड़ेगा । पंजाब समस्त जैन स्कूलों को एक सूत्र में पिरोकर उनकी उन्नति करना तथा समस्त स्कूलों को एक संघ के अधीन कर धर्मशिक्षा का प्रचार करना, महाराज श्री का लक्ष्य है इन्ही की कृपा जीवन धर्म (शेष पृष्ठ १६६ का ) दीक्षा बसन्त पंचमी १६८८ गुरुवार फरीदकोट (पंजाब) । गुरु तपस्वी श्री पन्नालालजी महाराज । आप एक उच्च कोटि के सफल एवं गंभीर वक्ता सन्त हैं । कवि होने के नाते आपका भाषण अति मधुर एवं कवित्व पूर्ण होता है । जैनधर्म दिवाकर तथा जैनागम रत्नाकर पूज्य श्री. आत्मारामजी म० के चरणों में ज्ञानाभ्यास करने से, तथा महा मान्य पूज्य श्री जवाहरलाल जी महाराज एवं वर्तमान में सर्व मान्य श्रद्धय कविवर उपाध्याय श्री अमरचन्दजी म० के समीपस्थ रहने से आप एक उच्च कोटि के ज्ञानी, गंभीर विचारक एवं सुलेखक व कवि हैं। आप एक बड़े समाज सुधारक भी हैं। आपके भाषणों में जहाँ धार्मिक भावना जागृत होती है वहां समाजोन्नति हेतु रुढीवाद के प्रति घृणा उत्पन्न हुए बिना नहीं रहती । आप जहां भी पधारते हैं कुरिवाजों फिजूल खर्ची, फैशन परस्ती तथा रेशम के उपयोग का घोर विरोध करते हैं। कुसम्प को मिटाकर संगठन द्वारा समाजोत्थान के रचनात्मक कार्य सुझाते हैं । आप एक अच्छे सुलेखक भी हैं । आपने २३ पुस्तकें लिखी है जिनमें प्रकाशित हुई हैं:-गीतों की दुनिया, संगीत इषुकार, संगीत संमति राजर्षि, निर्मोही नृपनाटक, बारह महीने, चटकीले छन्द, गज सुकुमाल, सबलानारी आदि । पन्यासजी श्री कीति मुनिजी महाराज आपका जन्म सं० १६५० में फतेहपुर (सिकर ) में हुआ। पिता का नाम श्री चुन्नीलालजी था । फलौदी में कमलगच्छाधिपति गादीघर यति श्री सुजानसुन्दरजी के पास ही आपका बाल्यकाल व्यतीत हुआ और आपने ही इन्हे काशी में विद्याभ्यास हेतु भेजा । सं. १६७१ में जब यति सुजान सुन्दर जी का स्वर्गवास हो गया तो आपने पूज्य श्री मोहनलालजी म० के सुशिष्य पन्यासजी श्री हीरा मुनि जी के शिष्य रूप में सं० १६७१ आषाढ़ कृष्णा ८ को आचार्य श्री क्षान्ति सूरिजी से जैन मुनि दीक्षा अंगीकार की । आप बड़े ही धार्मिक विधि विधानों के जानकार ज्ञानवान मुनि हैं। maragyanbhandar.com
SR No.034877
Book TitleJain Shraman Sangh ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain
PublisherJain Sahitya Mandir
Publication Year1959
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size133 MB
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