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________________ १६४ जैन श्रमण संघ का इतिहास alls-coloumio-diminisonmunonmaNID orpil-onaliscoullI calmlincolmunIMI> SonEMISTRINISonymsonIWwinionlmmi>TIHI मनिराज श्री हीरालालजी म० उदयपुर महाराणा श्री भूपालसिंहजी, सेंट्रल रेवेन्य मिनिस्टर तथा संसद् के एवं प्रान्तीय विधान सभाओं संसारी नाम श्री हीरालालजी । जन्म सं. १६६१ के कई सदस्यगण है। पौष शुक्ला १ शनिवार स्थान मंदसौर (मध्य प्रदेश) पिता श्री लक्ष्मीचन्दजी । माता श्रीमती हगामबाई मान श्री लाभचन्दजी महाराज जाति तथा गौत्र । ओसवाल दूगई। सं० १६७६ चित्ताखेड़ा ( मेवाड़) में सं० १६८१ में आपका माघ शुक्ला ३ शनिवार रामपुरा ( मध्य प्रदेश) में जन्म हुआ। आपका नाम लाभचन्द । पिता का नाम आपने पूज्य पिताजी के साथ ही दीक्षा ग्रहण की। नाथूलालजी तथा माता का नाम प्यारीबाई था। सं. १६६१ में रतलाम में प्राप, स्थेवर पद विभूषित श्री गुरु श्री लक्ष्मीचन्दजी म. सा० । दीक्षा दाता-सादी नन्दलालजी म० की सेवा में पधारे। आपने पूज्य श्री मान मर्दक पं. मुनि श्री नन्दलालजी म. सा. । शिक्षा खवचन्द्रजी म० की सेवा में रह कर धार्मिक अध्ययन प्राचार्य श्री खूबचन्दजी म. सा. आप। श्री ने जैनागमों किया। का न केवल पूर्ण अध्ययन ही किया है बल्कि कई सूत्र सं० १६१२ चैत्र शुक्ला प्रतिपदा को श्री जैन कंठस्थ भी कर लिए हैं। इसके अतिरिक्त "खूब दिवाकर प्र०व० सं० श्री चौथमलजी म० के सानिध्य कवितावली" "हीरक-हार" के तीन भाग, बंग बिहार में संयम वृत स्वीकार किया। विषापहार स्तोत्र, हीरक गीतांजली, भक्तामर स्तोत्र आपने बंगाल बिहार, गुजरात, सौराष्ट्र पंजाब आदि में विशेष रूप से बिहार का जन्म का महत्व का भावार्थ तथा अंग्रेजी भाषान्तर एवं हिन्दी पद्यानु- . पूर्ण प्रचार किया है। बंगाल में सराक जाति को वाद, आदर्श चरितम्, हीरक सहस्त्र दाहावला, मास पुनः जैन बनाने में आपके प्रयत्न प्रशंसनीय हैं। निषेध और गजल प्रच्छक आदि गद्य पद्यमय साहित्य बिहार प्रान्त विचरण समय बिहार का प्रकाशन कराया है। इससे मुनि श्री की सहज श्री आर० आर० दिवाकर ने पटना में आप श्री के साहित्याभिरुचि प्रकट होती है। प्रवचन सुन प्रसन्नता प्रकट की और आपके निमन्त्रण पर महावीर जयन्ति पर मुनि श्री वैशाली पधारे। आपके प्रवचन सरल और सीधी सादी भाषा में इस प्रान्त में कई स्थानों पर आपने पशुब ल रुकवई । हृदय परिवतन कारी रहते हैं। __आपने नैपाल की भी यात्रा की। काठ मांडू में ___ स्थानकवासी जैन श्रमण संघ की एक्यता में भी नैपाल नरेश और महारानी ने आपके प्रवचन सुने । आपने अपना गणाव च्छेदक पद विसर्जित कर वहाँ बुद्ध जयन्ति पर भाषण देते हुए भ० महावीर सक्रिय सहयोग दिया है। भारतीय लोकमानस के और बुद्ध पर तुलनात्मक विचार प्रकट किये जिसकी प्रिय वरिष्ठ मेतागणों ने आपके दर्शनों का लाभ सबने प्रशंसा की। ता० १८.६५७ को आप श्री के प्रयत्न से नेपाल में विराट अहिंसा सम्मेलन हुआ। लिया है, उनमें भारत के प्रधान मन्त्री पं. जवाहरलाल नेपाल के महा मन्त्री तथा अनेक उच्चाधिकारियों जो नेहरु, आचार्य विनोबा भावे, पंजाब उत्तर प्रदेश, ने आपके दर्शन किये। बिहार, बंगाल और ऑध्र प्रदेश के राज्यपाल तथा इस प्रकार भारत के इतने सुदूर क्षेत्र में जैनधर्म संसद के डिप्टी स्पीकर, श्री अनन्त शयनम् आयंगर, का प्रचार करने का आपने श्रेयस्कर कार्य किया है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034877
Book TitleJain Shraman Sangh ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain
PublisherJain Sahitya Mandir
Publication Year1959
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size133 MB
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