SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 193
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन श्रमण सौरभ ६६३ मनि श्री फलचन्दजी (पुप्फ भिक्ख ) . साहित्य निर्माण की ओर आपको विशेष रुचि है। पापने अब तक कई पुस्तकें लिखी हैं, जिनमें गोरा रंग, भरा हुआ बदन, ऊंचा कद, मस्तिष्क स्वतंत्रता के चार द्वार, जैन सभ्यता, प्रसंगोचितपद्यपर तेज, मधुरभाषी, साहित्य प्रेमी, जैनधर्म का व्या मालिका, मेरी अजमेर मुनिसम्मेलन यात्रा, गल्प पक रूप, अहिंसा आदि प्रचार में संलग्न, घुमक्कड तथा फकीर तबीयत, ऐसे कुछ हैं मुनि श्री फूलचंदजी। कुसुमकोरक, गल्पकुसुमाकर, पंच परमेष्ठी, कल्पसूत्र हिन्दी, नवपदार्थ ज्ञान सार, वोर स्तुति, वीर स्वयं ही ___भापका जन्म चैत सुदी दशमी, वि० सं० १६५२ ह भगवान, परदेशी की प्यारी बातें, महावीर निर्वाण में राठौड क्षत्रिय कुल के बीकागोत्र में गांव 'भाडला और दीवाली और "सुत्तागमे" मूल पाठ ३२ सूत्र शोमाना' (बीकानेर राज्य ) में हुआ था। आपके .. प्राकृत-अर्धमागधी दो भाग। आपको रचनाओं में पिता का नाम ठाकुर विपिनसिंह और माता का नाम अन्तिम सम्पादित सूत्र संग्रह एक महान स्मारकतुल्य शारदाबाई था । आपका बचपन का म जेठसिंह कार्य है । इसकी तैयारी में आपका पच्चीस छब्बीस था। आपकी आहेती दीक्षा पोहवदी एकादशी, संवत् वर्ष का लंबा समय लगा और देश-विदेशों के प्राकृत १९६८ में सोलह वर्ष की आयु में खानपुर गांव जिला तथा जैन धर्म के विद्वानों ने उनको मुक्त कण्ठ से रोहतक (पंजाब) में परम तपस्वी मुनिशिरोमणि मुनि , प्रशंसा की है। श्री फकोरचन्द जी द्वारा हुई थी। श्रापका दीक्षा नाम आपने जहां गुडगांव आदि क्षेत्रों में स्थानक स्थामनि फूलचन्द रखा गया। अब इस नाम के अतिरिक्त पित करने की प्रेरणा दी वहां गुडगांव में जैन साहित्य स्वसम्पादित प्रन्यों में आप अपने आपको 'पुफभिक्खू' १ प्रकाशनार्थ श्रीसूत्रागम प्रकाशक समिति भी स्थापित की। लिखते हैं और साहित्य जगत् में इसी नाम से जैन श्रमण समाज में आपका बडा मान तथा प्रसिद्ध हैं। आपने अपने जीवन में समस्त भारत में भ्रमण आदर है । आप वर्धमान स्थानकवासी श्रमण संघ के किया है, जिस में आपके काश्मीर, कराची, बंगाल प्रचार मंत्री हैं। आपके शिष्य मुनि श्री सुमित्रदेव ( कलकत्ता) विहार, सिंध, तक्षकशिला, बम्बई प्रान्त । __ जी भी एक उदीयमान लेखक तथा मुनि रत्न है। आदि के पर्यटन और चतुर्मास प्रसिद्ध हैं। जहां जहां मुनि श्री सुमित्रदेवजी आप गये, वहां की जनता में आप प्रिय बन गये। इनका संसारी नाम लक्ष्मणदत्त है । गढ़ हिम्मत आपके उपदेशों के प्रभाव और प्रयत्न से बंगाल- सिंह (जयपुर) में इनका जन्म वि. संवत १९७० में विहार में कालीदेवी के मन्दिरों पर पशुओं की बली हुआ था। उनके पिता का नाम पं० नन्हेसिंह शर्मा कई स्थानों में बन्द होगई। कालीघाट-कलकत्ता में और माता का नाम वसन्ती था । ये गौड ब्राह्मण थे। आपके द्वारा बारह लाख हेडबिल पशुवध का अठारह वर्ष की आयु तक इन्होंने नगन से निषेध कराने के लिये बंटवाये गये, जिनका अच्छा विद्याभ्यास किया, और आज एक उच्चकोटि के प्रभाव पड़ा। जम्मू-कश्मीर यात्रा के रास्ते में भापके विद्वान एवं लेखक हैं। उपदेश से बहुत से हिन्दुओं तथा मुसलमानों ने मांस इनकी दीक्षा वैशाख सुदी तीज ( अक्षय तृतीया) मदिरा आदि का त्याग किया। कराची में आपने के दिन स. १६८८ में नादौन नगर में व्यास नदी के सिन्धजीवदया मंडल स्थापित कराया, जिसके सभापति तट पर जैन धर्मापदेष्टा पण्डित गत्म बालब्रह्मचारी श्रो जमशेदजी नसरवानजी मेहता बनाये गये । इस श्री जैन मुनि फूलचन्दजी (पुप्फ भिक्खू) द्वारा सम्पन्न मंडन ने सिंधी समाज में जीवदया का अच्छा प्रचार हुई । इनका दीक्षा नाम मुनिसुमित्रदेव है। ये अपने किया। आपको 'सुमित्त भिक्खू' भी लिखते हैं। Shree Sudhammaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034877
Book TitleJain Shraman Sangh ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain
PublisherJain Sahitya Mandir
Publication Year1959
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size133 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy