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________________ जैन श्रमण संघ का इतिहास ICIPALITY Ilks FolND TWINKLIN NISARAININD THINKINortunatipsNIND THISROTHINNISONIND KILLINS HINDImpolice 'शमन' से अर्थ है अपनी वृतियों का शमन उल्लेख पाया जाता है । इस प्रकार ब्राह्मण संस्कृति करना और उन पर विजय प्राप्त करना । इस प्रकार में भक्ति भाव की प्रधानता थी। श्रमण संस्कृति श्रम, समानता और शमन रूप तीन यद्यपि इस प्रकार को प्रकृति पूजा और ईश्वरोतत्वों पर आधारित है । जैन श्रमण संघ ने स्व पर पासना के लिये सबको समान अधिकार था। वर्ग कल्याण के लिये इन्हीं तत्वों को अपनाना श्रेयस्कार भेद या वर्ण भेद को कोई स्थान नहीं था। किन्तु क्रिया कांड पर ही विशेष आधारित इस समझा और इन्हीं तत्वों को अपनाने से वे श्रमण ब्राह्मण संस्कृति को धीरे धीरे ब्राह्मण वर्ग ने अपनी शब्द से सम्बोधित हुए। रोजी का आधार बना कर धार्मिक जगत पर अपना ब्राह्मण संस्कृति का प्रवाह बाह्य क्रिया कांड प्रधान भौतिक जीवन की ओर विशेष गतिशील रहा तो प्रभुत्व स्थापित करना प्रारंभ कर दिया। वे विधि विधान के विशेष जानकार होते थे अतः धार्मिक श्रमण संस्कृति का प्रवाह उच्चतम आध्यात्मिक जीवन निर्माण का मार्ग बताने की ओर प्रवाहित रहा । जहाँ अनुष्ठान हेतु अन्य वर्ग को उनके आश्रित रहना पड़ने लगा। ब्राह्मण संस्कृति बाह्य क्रिया कांडों के विश्वास पर इस प्रकार वाह्मण संस्कृति सिद्धान्तों पर आधारित परमात्मा को प्रसन्न करके ऐहिक सुख प्राप्त करने न रह कर ब्राह्मण वर्ग के बताये हुए मार्गों पर की कल्पनाओं तक ही अटक जाती है वहां श्रमण प्रवाहित होने लगी जिसके परिणाम स्वरूप धार्मिक संस्कृति स्व पुरुषार्थ से आत्म विकास के मार्ग पर जगत् में व्यक्ति वाद, स्वार्थ एवं धर्म के नाम पर आरुढ़ होकर त्याग द्वारा मन की वासनाओं का अन्ध श्रद्धा, अज्ञानता एवं पाखंड का बोल बाला होने दलन करती हुई ऐहिक सुखों के प्रलोभनों को ठुकरा लगा। धर्म के स्थान पर बाह्य क्रिया कांड पनपने कर पूर्ण सच्चिदानन्द अजर अमर परमात्म पद प्राप्त लगे। करने के लिये सतत् प्रयत्न शील रहती है। यही नहीं ब्राह्मण वर्ग ने अपनी स्वार्थ पूर्ति हेतु __ जहाँ ब्राह्मण संस्कृति के त्याग में भी भोग की धर्म के मूल आधारों और सिद्धान्तों का प्रति पादन भावना झलकती है वहाँ श्रमण संस्कृति के भोग में करना छोड़कर तथा जन समूह को धर्म का सत्याभी त्याग को ही भावना प्रतिध्वनित होनी है। नुष्ठान कराने के स्थान पर अपनी स्थायी आमदनी ___ ब्राह्मण संस्कृति का मूल आधार 'ब्रह्म' यानि और स्वार्थ सिद्धी का ही विशेष ध्यान रख्नना प्रारंभ परमेश्वर है । ईश्वरोपसना हेतु यज्ञ, पूजा, स्तुति आदि किया और हर धार्मिक अनुष्ठान के साथ म्ब निहित क्रिया कांड प्रधान आधार मानकर उनके आश्रय पर स्वार्थ-जोड़ दिया। इस प्रकार पर बुद्धिजिवियों के ही अपना उत्कर्ष मानना ब्राह्मण संस्कति की मूल लिए बिना ब्राह्मण वर्ग के धामिक अनुष्ठान दुर्लभ परम्परा रही है। वेद कालोन संस्कृति में प्रकृति रहा और इस वर्ग द्वारा प्रतिपादित धर्म का मार्ग पूजा के लिये अग्नि, वायु, जल, सूर्य आदि की स्तुति सरल एवं सहज होने से यह शीघ्र लोक प्रचलन में केलिये विविध प्रकार के विधि विधान तथा मन्त्रोंका आगया। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034877
Book TitleJain Shraman Sangh ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain
PublisherJain Sahitya Mandir
Publication Year1959
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size133 MB
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