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________________ जैन श्रमण-सौरभ SARITATIOHINDITURISOIMELINEETITHIMI><DIMINISATIRRITISTIAN HIDIRTISTOINISTIMIDCONSTITANDROIN FULLH6R श्राचार्य श्री विजयलब्धिसरिजी म० आप षड़ दर्शनों के पारगामी विद्वान हैं । तथा महान साहित्य सेवी हैं । आप श्री द्वारा रचित 'वैराग्य रस मंजरी, तत्व न्याय विभाकर, सूत्रार्थ मुक्तावली, द्वादशारनम चक्र० आदि ग्रन्थ अपनी खास विशेषता रखते हैं। इनके अतिरिक्त मूर्ति मंडन, अविद्यांधकार मार्तण्ड, मत मीमांसा, दयानन्द कुतर्क तिमिर तरणि, देव द्रव्य सिद्धी आदि ग्रन्थ सरल एव जैन शासनोपयोगी हैं। आपकी कवित्र शक्ति में भक्ति एवं वैराग्य भरा हुपा है। पद्य बद्ध निम्न रचनाए हैं-नूतन पूजा संग्रह, संस्कृत चैत्य वन्दन स्तुति, नूतन सज्झाय संग्रह आदि। एक प्रखर व्याख्याता, विद्वान साहित्य कार होने के साथ साथ दिगाज शास्त्रार्थ शिरोमणो भी हैं। अापका जन्म वि० सं० १६४० में भयणीजी श्रापने कई स्थानों पर आर्य समाजियों एवं अन्य मत (गुजरात ) में हुआ। पिता नाम-पिताम्बरदास । वादियों को शास्त्रार्थ में पराजित किया है और इस माता नाम-मोतीवहन । जन्म नाम लालचन्द भाई । प्रकार जैन शासन का गौरव बढ़ाते हुए महा प्रभाविक बालवय से ही आपके चित्त में वैराग्य वृत्ति थी। जैनाचार्य सिद्ध हुए हैं। पढ़ने में भी बड़े तीव्र बुद्धिशाली थे। वि० स० १६५६ शिष्य समुदाय में आचार्य श्री विजय कमलसूरिजी के पास बोरू गाँव में दीक्षित हुए। आपकी अद्भुत प्रतिभा, बुलन्द आपकी शिष्य परम्परा में आचार्य श्री विजय आवाज, वाणी की मधुरता पूर्ण प्रखर व्याख्यान शैली गंभे रस रिजी, आ० श्री विजय लक्ष्मणसूरिजी, श्रा० से प्रसन्न हो आचार्य श्री ने आपको सं० १६७१ में श्री वि• भुवन तिल कसूरिजी आदि तीन आचार्य हैं। "जैन रत्न व्याख्यान वाचस्पति' की पदवी से विभूषित तथा उपाध्याय जयन्त विजयजी, पं० नवीन विजयजी किया। तथा सं० १६८१ को छाणी (गु०) में आचार्य गणि, पं० प्रवीण वि० आदि ६ गणिवर्य हैं । अन्य पद प्रदान किया। मुनिजन भी काफी बड़ी संख्या में हैं।
SR No.034877
Book TitleJain Shraman Sangh ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain
PublisherJain Sahitya Mandir
Publication Year1959
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size133 MB
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