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________________ १५६ जैन श्रमण संघ का इतिहास msamumromanaDIDImmm ISommo501110 111005010-1B1DumbromoOUmedium आचार्य श्री विजय यशोदेवसूरीश्वरजी मुनि जयघोष विजयजी, धर्मानन्द विजयजी, हेमचन्द्र विजयजी, भद्रगुप्त वि० आदि साहित्य एक जन्म सं० १६४४ चै० व० १३ अहमदाबाद । जैनागम के विद्वान हैं। पं० श्री कांति विजयजी, रैवत गृहस्थ नाम जेसिंग भाई। पिता-लालभाई । माता विजयजी ज्योतिर्विद हैं। गजराबेन । जन्म नाम जेसिंगभाई । दीक्षा १९८२ श्री सुदर्शन विजयजी गणि फा० शु० ३ अहमदाबाद । सं० १६६५ १० व०६ को पन्यास पद । सं० २००५ माह सुदी ५ को अहमदाबाद में प्राचार्य पद । तीव्र वैराग्य से अनुरंजित ज्ञान, ध्यान और तपस्या में विशेष लीन रहना ही आपका जीवन क्रम है । मंदिरों की प्रतिष्ठादि, उनके सुधार, संघ में संगठन कराना आपकी विशेषताएं हैं। पं० मानविजय गणि जन्म सं० १९५४ आसोज शुक्ला १ अहमदाबाद जन्म नाम माणेकलाल । पिता कछराभाई । माता मंगु बाई । जाति दसा पोरवाड । दीक्षा सं० १९८३ चै० शु० १३ खंभात । गुरु श्रा० विजय रामचन्द्रसूरि जी। रचनाए-पिण्ड विशुद्धि, आवश्यक नियुक्ति दीपिका, उपमिति भव प्रपंचा, कथा सागेद्धार, ११ आवश्यक नियुक्ति व चूणि, विभक्ति विचार प्रकरण आदि ग्रंथों आप प्राचार्य श्रीविजय भुवनसूरीश्वरजी के लघु का सम्पादन। भाता है। जन्म सं० १६७० मा० शु०७ उदयपुर अन्य विद्ववर-मुनि मंडल [मेवाड़] । पिता लछमीलालजी माला कंकुराई । जाति बीसा पासवाल महेता । दीक्षा १९८६ पोष वदो ५ | पूज्य पन्यास श्री धर्म विजयजी गणि श्री कनक पाटण । गणि पद २०१३ का व०५ पार बन्दर।" विजयजी गणि, पं० श्री कांनि विजयजी गणि, पं० पन्यास पद २०१५ वै० शु० ६ बांकी कच्छ । श्री भद्रकर विजयजी गणी, मुक्ति विजयजी गांरण, आप बड़े ही साहित्य प्रेमी हैं। साहित्य सजन भानुविजयजी गणि, मुनिगज श्री हिमांशु विजयजी, एक प्रकाशन के प्रति विशेष दिलचस्पी रखते हैं । पद्मविजयजी गणि, सुदशनविजयजी गणि, हर्ष विजय . करीब १२-१३ ग्रन्थ सुसम्पादित कर छपवाये है। कई जी, राज विजयजी, कुमुद विजयजी. महानंद विजय स्थानों पर उपधान महोत्सव कराये। सादडो पारवाड़। जी, नित्यानन्द विजयजी, आदि विद्वान मुनि वृन्द हैं। जामनगर, गमलनेर और पाटन में ज्ञान भडारों की मुनिराज श्री चन्द्रयश विजयजी, त्रिलोचन विजय स्थापना करवाई। जी गणि, रैवत विजयजजी गणि, जयविजयजी, जया आपके प्रमोद विजयजी तथा लाभ विजयजी पद्म विजयजी आदि महान् तपस्वी मुनिवर हैं। मा नामक दो शिष्य है । ponार
SR No.034877
Book TitleJain Shraman Sangh ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain
PublisherJain Sahitya Mandir
Publication Year1959
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size133 MB
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