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________________ जैन श्रमण संघ का इतिहास DOINDAIN WINDOMINITIAL-INDIIIIIIDOHIBITIONSIDD HISHE I DIO HIDDITIDEOINDI प्राचार्य श्री विजय उमंगसूरिजी प्राचार्य श्री विजय समुद्र सूरिजी (लेखक:-महेन्द्र कुमार 'मस्त' समाना पंजाब ) m PRINCRETREETTE NCODINmeet UERYथGHEREयरछाहाराका आप श्री का जन्म सं. १६४६ में रामनगर (पंजाब) में हुआ। पिता का नाम गंगारामजी तथा माता का नाम कमदेवी था। दीक्षा सं०१६६४ कार्तिक वदी ३ तलाजा सौराष्ट्र में हुई। सं०१६७६ कार्तिक वदी ५ को पाली में पन्यास घद । सं० १६६२ वैशाख सुदी ४ को वलाद में उपाध्याय पद तथा वैशाख सुदी। ६ स० १६६२ को बडौदा में आचार्या पद प्रदान किया युगवीर प्राचार्य भगवान पंजाब केसरी श्री मद् गया तथा बडौदा आदि नाथ स्वामा के मन्दिरजी के विजयवल्लभसूरीश्वरजी महाराज के पट्टधर शान्तमति, प्रतिष्ठा महोत्सव के शुभ अवसर पर सं० २०८ परमगुरु भक्त श्री मद् विजय समुद्र सूरिजा के नाम फाल्गुन शुक्ला १० गुरुवार को श्री संघ समक्ष प्रा० से कौन अपरिचित होगा। पंजाब, मरुधर, गुजगत श्री विजयवल्लभ सूरीश्वरजी ने अपने आपका पट्टधर तरीके घोषित किया। तथा सौरष्ट्र में आपके द्वारा किये गए कार्य, जन आप श्री की अध्यक्षता में अनेक स्थानों पर कल्याण तथा समाज सुधार के सफल प्रयास एव प्रतिष्ठा महोत्सव, उपाधान, उद्यापन, शान्ति स्नात्र शासन सेवाएँ सव विदित हैं। आदि अनेक धार्मिक उत्सव सम्पन्न हुए हैं। साथ ही जैनधर्म प्रचार, साहित्य सजन, जनेतरों आचार्य श्री जी का जन्म पाली मारवाड़ में सं० को प्रबोध आदि प्रवृत्तियों की ओर सदा से आप श्रा १६४८ मगसर सुदि ११ (मौन एकादशी ) के दिन का विशेष लक्ष्य रहा है। ओसवालवंशीय वागरेचा मूना गोत्रीय श्रीशोभाचंदजी आप श्री के प्रधान शिष्य पन्यासजी श्री उदय के घर सुश्री धारणीदेवी की कुक्षी से हुआ। विजयगणी भी बड़े प्रभावशाली मुनि हैं। आपका गृहस्थ नाम सुखराज था। बालक सुखराज
SR No.034877
Book TitleJain Shraman Sangh ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain
PublisherJain Sahitya Mandir
Publication Year1959
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size133 MB
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