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________________ जैन श्रमणमामा- स्व० उपाध्याय श्री सोहन विजयजी संस्थाओं की ओर से भी आप को मान पत्र दिए गए । लाखों हिन्दु व मुसलमानों को आपने मांसा. हार का त्याग क ाया। कसाइयों ने अपने कसाई खाने तक छोड़ दिए। इन्हीं गुणों के कारण आपको "सौरिकजन ( कसाई ) प्रतिबोधक" कहा जाता है। सामाजिक उत्थान और संगठन के लिए आप के सतत् प्रयत्नों का परिणाम "श्री आत्मानन्द जैन महा सभा (पंजाब)" के रूप में हमारे सामने है। आप हो इस महान संस्था के जन्म दाता थे। आपके प्रयत्नों से पंजाब के जैनों में स्वदेशी का प्रचार, दहेज कुप्रथा का विनाश और ओसवालों व खण्डेलवालों में विवाह रिश्ता नाता प्रारंभ हुआ। श्राप बोलते थे तो ऐसा लगता था कि पंजाब जैन समाज की आत्मा बोल रही है। आप भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन के पूरे समर्थक थे । अग्रेजों श्राप श्री जी का जन्म जम्मू (कश्मीर ) के के दमन चक्र को देख कर आप ब्रिटिश सरकार को कोसने से भी न डरते थे। आप की सेवाओं और ओसवाल कुल में हुआ। आपका बचपन का नाम समाज जागरण के अथक प्रयत्नों से प्रभावित हो वसन्त राय था। वि० संवत १९६० में समाना में कर सं० १६८१ में जैन लाहौर में संघ ने आप श्री को आपने स्थानक वासी मुनि श्री गैंडे राय जी के पास उपाध्याय पदवी विभषित किया। दीक्षा ली। लगातार परिश्रमों और दिन रात कार्य में तीर्थ श्री शत्र जय जो की यात्रा पश्चात वि० जुटे रहने के कारण आप का स्वास्थ्य बिगड गया । सं० १६६३ में दसाडा ( गुजरात ) में तपस्वी मुनि आप सूख कर कांटा हो गए किन्तु जन समाज के उत्थान में हर समय प्रयत्न शील रहे। थकावट श्री शुभ विजय जी के द्वारा आपकी संवेगी दीक्षा आप से कोसों दूर भागती थी। सूखे शरीर से भी हुई। आप पू. गुरु देव श्री विजय वल्लभ सूरि आप समाज सुधार योजनाओं को कार्य रूप देते के शिष्य कहलाए। रहे। परन्तु कब तक । अनन्तः गुजराँवाला में आप की गुरु भक्ति आद्वितीय और असीम थी। दुष्ट काल का बुलावा आ गया और एक दिन (सं० १६८२) में वह इस वीर पुत्र को सदा के आप देश भक्त और पारस्परिक प्रेम के समर्थक, हमारे से छीन कर ले गया। उन का जीवन युग थे। कई नगरों की नगरपालिका कमेटियों ने आप यगान्तर तक हमारा पथ प्रदशन करता रहेको अभिनन्दन पत्र दिये थे। मुसलमान और सिख यहो प्रार्थना है। लेखक-महेन्द्र मस्त'
SR No.034877
Book TitleJain Shraman Sangh ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain
PublisherJain Sahitya Mandir
Publication Year1959
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size133 MB
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