SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 13
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १३ जैन धम की प्राचीनता u: 10 11-lk ! NIA HAIRE:HIST! HISCHIM IAS KOLHI: Wi>\\HIHIS PINikiti GHP PINSI FIED Full HDPH T मर्हन्विभषि सायकानि धन्याह भिक यजतं विश्रूप, नहीं कह सकता है कि जैनधर्म वैदिक धर्म के बाद ( अ० १ ० ६ व० १६) अहंन्निदं दयसे विश्व उत्पन्न हुआ है। वेदों में जा प्रमाण दिये गये हैं भवभुवन वा ओ जीयो रुद्रत्वदास्ति ( अ० २ अ. वही इस बात को सिद्ध करने के लिए पर्याप्त है कि ५.व० १७) जैनधर्म अति प्राचीन काल से चला आता है । जिस अर्थ-हे अहनदेव ! तुम धर्मरूपी वाणों को, वैदिक धर्ग को प्राचीन बतलाया जाता है उससे भी सदपदेश रूप धनुष को, अनन्त तानरूप आभषण पहले जनधर्म अस्तित्व रखता था। को धारण किये हुए हो । हे अर्हन ! श्राप जगत्प्रका- जैनधर्म बौद्ध धर्म से प्राचीन है शक केवल ज्ञान प्राप्त हो, संसार के जीवों के रक्षक यह तो निर्विवाद है कि बौद्ध धर्म के संस्थापक हो, काम क्रोधादि शत्रु समूह के लिए भयंकर हो, बुद्ध हैं । ये भगवान महावीर के समकालीन है। आपके समान अन्य बलवान नहीं है। इससे यह सिद्ध है कि बौद्ध धम लगभग अढ़ाई हजार ॐ रक्ष रक्ष अरिष्टनेमि स्वाहा । वामदेव वर्ष पूर्व का है इससे पहले बौद्ध धर्म का अस्तित्व शान्त्यर्थ मनुविधीयते सोअस्माकं अरिष्टनेमि स्वाहा। नहीं था। आज के निष्पक्ष इतिहास वेत्ताओं ने यह ____ॐ त्रैलोक्य प्रतिष्ठितान चतुर्विशति तीर्थ करान स्वीकार कर लिया है कि जनधम बुद्ध से बहुत रिषभाद्या वर्द्धमानान्तान् सिद्धान शरण प्रपद्ये। पहले ही प्रचलित था। इससे लेविज, एलफिल्टन, ____ॐ नमो अहतो रिषभो ॐ रिषभं पवित्र पुरु व वर, वार्थ आदि पाश्चात्य विद्वानों ने जैनधर्म को हुत मध्वरं यज्ञेषु नग्नं परंम माहसं स्तुत वारं शत्रु बौद्ध की शाखा मानने की जो गलती की है उसका जयन्तं पशुरिन्द्रमाहु रिति स्वाहा । संशोधन हो जाता है। उक्त विद्वानों ने वस्तुस्थिति ___ॐ स्वस्तिन इन्द्रो वृद्धश्रवाः स्वस्ति नः पूषा विश्व का परिपूर्ण ज्ञान प्राप्त करने के पहले ही पूर्वग्रह के वेदाः स्वस्तिनस्ताक्ष्यो अरिष्ठ नेमि; स्वास्तिनो कारण दोष में फंसार गलत राय काम कर ली है। वृहस्पतिर्दधातु । केवल अपने पूर्वग्रह के कारण किये अनुमान के बल इत्यादि बहुत से वेदमंत्रों में जैन तीर्थ कर श्री पर जैन धर्म के सम्बन्ध में ऐसा गलत अभिप्राय रिषभदेव, सुपार्श्वनाथ, अरिष्ठनेमि आदि तीर्थ करें व्यक्त करके इन्होंने उसके साथ ही नहीं परन्तु वास्तके नाम आये हैं । इन तीर्थंकरों के प्रति पूज्य भाव रिकता के साथ अन्याय किया है । रखने की प्रेरणा करने वाले कतिपय वेदमंत्र पाये इन विद्वानों के इस भ्रम का कारण यह है कि जाते हैं । इन सब प्रमाणों पर से यह प्रतीत होता है जैनधर्म और बौद्ध धर्म के कुछ सिद्धांत आपस में कि वेदों की रचना के पूर्व भी जैनधर्ग बड़े प्रभाव मिलते जुलते हैं। भगवान महावीर और बुद्ध ने के साथ व्याप्त था तभी ता वेदों में उनके नाम बड़े तत्कालीन वैदिक हिंसा का जोरदार विरोध किया आदर के साथ उल्लिखित हुए हैं। इन बातों का था और ब्राह्मणों को अखण्ड सत्ता को अभित्रस्त विचार करने पर कोई भी निष्पक्ष वेदानुयागी यह किया था इसलिए बाह्मण लेखकों ने इन दोनों धर्मों Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034877
Book TitleJain Shraman Sangh ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain
PublisherJain Sahitya Mandir
Publication Year1959
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size133 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy