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________________ वर्तमान-मुनि परम्परा ID TIMIM DATIDHIDDIDIDAITHILD THATISGIRUDDITIO HIDIIN INSOUNDRIDAHINI IN HINDHIII COM in MISSMSAImaupda न रहेगा । ऐसा ही हुआ। सं० १७२१ में उज्जैन में बैठ गये और कुछ ही दिनों बाद आप कृशकायी हो आप आचार्य पद से विभूषित किये गये। मालवा में स्वर्ग सिधारे । आपके काफी भक्त है। ___ स्थानकवासी जैन कान्फ्रेंस का अभ्युदय आपके १६ दीक्षित शिष्य हुए जिनमें ३५ तो सन् १८६४ में दिगम्बर जैन कान्फ्रेस बनी। संस्कृत प्राकृत के विद्वान हुए। इन ३५ मुनियों के सन् १६०२ में श्वेताम्बर जैन कान्फ्रेंस तथा सन् अलग २ समुदाय बने । इतने अधिक समुदायों का १९०६ में स्थानकवासी जैन कांफ्रेंस की स्थापना हुई। संभालना कठिन था अतः सं० १७२ चैत्र शुक्ला १३ इस समय स्थानकवासी समाज में ३० सम्प्रदायें को सभी को धारा नगरी में एकत्रकर २२ सम्प्रदायों थीं। २६ सम्प्रदायों के प्रतिनिधि कान्फ्रेंस में में विभाजित कर दिया। यही बाद में 'बाईस टोला' सम्मिलित हुए थे। उस समय स्था० साधु साध्वी की कहलाया और स्थानकवासी सम्प्रदाय का पर्यायवाची संख्या १५६५ थी। शब्द भी बना। इन २२ सम्प्रदायों के नाम इस इस समय से स्थानकवासी सम्प्रदाय के जैन प्रकार हैं:-१ पूज्य श्री धर्मदासजी म. की सम्प्रदाय मुनिराजो का कान्फ्रेंस के साथ गहरा सम्बन्ध जुड़ा। २ पू० श्री धन्नाजी ३ श्री लालचन्दजी ४ मन्नाजी ५ पाँच धर्मसुधारकों की परम्परा बड़े पृथ्वी चन्दजी ६ छोटेलालजी ७ बालचन्दजी उक्त ५ धर्म सुधारकों की परम्परा का विशेष ८ ताराचन्दजी प्रेमचन्दजी १० खेतसिंहजी ११ इतिहास काफी विस्तृत है तथा उसका वर्णन पृष्ठ पदार्थजी १२ लोकमलजी १३ भवानीदासजी १४ १०७ पर दिया गया है अत: जिनका प्रभुत्व समुदाय मलूकचन्दजी १५ पुरुषोत्तमजी १६ मुकुटरायजी १७ वा टोले के रूप में "श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन मनोहरदासजी १८ रामचन्दजो १६ गुरु महायजी श्रमण संघ" के निर्माण तक रहा उन्हीं पर यहाँ २० बापजी २१ रामरतन जी तथा २२ पूज्य श्री विवेचन करना चाहेंगे। मूलचन्दजी महाराज की सम्प्रदाय। सभी नामों के सादड़ी में बृहत साधु सम्मेलन साथ भादि में पूज्य श्री तथा अंत में महाराज सादडी (मारवाड़) में वि० सं० २००६ बत्तय शब्द समझें। तृतिया ता. २७-४-५२ को समस्त स्थानकवासी श्रापके स्वर्ग गमन की घटना भी बड़ी विचित्र समदायों का एक संगठन बनाने की दृष्टि से एक है। कहते हैं आपके एक शिष्य मुनिने अपनी प्रान्तम बहत् साधु सम्मेलन हुआ। अवस्था जान कर संथारा कर लिया पर बाद में वे इस सम्मेलन में निम्न सम्प्रदायों के प्रतिनिधि विचलित होगये । धर्मदासजी ने उसे अपने आने तक सम्मिलित हुए:रुके रहने को कहनाया। आप अग्र विहार कर धारा (१) पूज्य श्री प्रात्मारामजी म० की सम्प्रदाय । नगरी पहुंचे पर शिष्य मुनि धीरज छोड़ चुके थे इस मुनि ८८ आर्या ८१ । प्रतिनिधि मुनि श्री प्रेम पर उनके स्थान पर स्वयं धर्मदासजी संथारा करके चन्दजी म०। Shree Sudhammaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034877
Book TitleJain Shraman Sangh ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain
PublisherJain Sahitya Mandir
Publication Year1959
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size133 MB
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