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________________ १२४ जैन श्रमण संघ का इतिहास DAIHINDIpATITANIDAIMURD-IIDOtpoimmoditD INDOMINDI1D DIDIHID 11 1 110IIIIIIIIDG010-11 आदि में बहुत प्रसिद्ध है। अभी आपके समुदाय में आध्यात्मानुभव व योगप्रकाश; स्यादवाद् अनुभव पाध्याय लब्धि मुनिजी, बुद्धि मुनिजी गुलाब मुनिजी रत्नाकर शुद्धदेवअनुभव विचार, दुव्यानुभवरत्नाकर आदि १०-१२ बडे क्रियापात्र साधु हैं । कुछ साध्वियाँ आत्मभ्रमोंछेदनभानु आदि कई विशिष्ट ग्रन्थ हैं। भी हैं। उ० लब्धिमुनिजी ने करीब ३०-३५ हजार आपका स्वर्गवास सं० १६५६ में जमवरे में हुआ। श्लोक परिमित पद्यबद्ध संस्कृत ग्रन्थ बनाये हैं और अध्यात्मानुभव योग प्रकाश ग्रन्थ से आपकी योग ___ सम्बन्धी जानकारी और अनुभवों का विशद् परिचय बुद्धिमुनिजी ने भी अनेक ग्रन्थों का विद्वतापूर्ण संपादन । दिन मिलता है। किया है। जिनरत्नसूरिजी के शिष्यों में भद्रमुनिजी खरतरगच्छ का तीसरा साधु समुदाय, जिनकृपाने आध्यात्मिक साधना में महत्व पूर्ण प्रगति की। चन्द्रसूरीजी का है। आप भी पहले यति थे । सं० आज वे सहजानंदजी के नाम से एक आत्मानुभवी १६४३ में आपने क्रियाउद्धार किया। सं० १९७२ में और आध्यात्मिक-योगी, संत के रुप में प्रसिद्ध है। बम्बई में आचार्यपद मिला । सं० १६६५ में सिद्धक्षेत्र अपने ढंग के सारे जेन श्रमण समुदाय में एक ही पालीताणा में स्वर्गवास हुआ। आप बहुत बड़े विद्वान, आत्मानुभवी योगी हैं। क्रियापात्र तथा प्रभावशाली गीतार्थ प्राचार्य थे आपके खरतरगच्छ में योग-अध्यात्म की परम्परा ही शिष्यों में जयसागरसूरिजी भी अच्छे विद्वान और उल्लेखनीय रही है । योगिराज अानन्दधनजी मूलतः त्यागी साधु थे। विद्यमान साधुओं में उपाध्याय खरतरगच्छ के थे । उसके बाद श्रीमद् देवचन्दजी सुखसागरजो हैं आपके शिष्य कान्तिसागरजी भी बड़े प्राध्यात्म-तत्ववेत्ता हो गये हैं। जिन्होंने भक्ति अच्छे विद्वान और वक्ता हैं। जिन्होंने 'खंडहरों के और अध्यात्म का अपूर्व मेल बैठाया है। तदन्तर वैभव' आदि ग्रन्थ और कई विद्वता पूर्ण लेख लिखे चिदानन्दजी ( कपूरचन्दजी) भी खरतरगच्छ के ही हैं। कृषाचन्द्रसूरि का समुदाय अभी करीब १० साधु योगियों में उल्लेखनीय थे तथा इनसे कुछ पूर्ववर्ती और १०-१५ साध्वियाँ विद्यमान हैं। काशी के मस्त योगी झनसागरजी बीकानेर के श्मशानों के हीराचंद सूरि भी उल्लेखनीय हैं। पास वर्षों तक साधना करते रहे हैं। बीकानेर, जयपुर खरतरगच्छ में भी तपागच्छ की तरह १८-१२ शाखाएं हुई । जिनमें से अभी चार शाखाओं के श्री किशनगढ़ और उदयपुर के महाराजा आपके बड़े पूज्य और यति विद्यमान हैं। श्रीपूज्य परम्परा में भक्त थे । १८ वर्ष की दोयु में बीकानेर में आपका बीकानेर की भट्टारक शाखा के जिन विजयेन्द्रसरिजो स्वर्गवास हुआ । अनन्दधनजी की चौवीसी और कुछ बड़े प्रभावशाली हैं । इसी तरह लखनऊ की जिनरग पदों का मर्मस्पशी विवेचन आपने किया है। विशेष सूरि शाखा के विजयेन्द्रसूरि और जयपुर की मंडावरी जानने के लिए हमारा 'ज्ञानसागर ग्रन्थावली' नामक शाखा के जिनधरणेन्द्रसूरिजो भी अच्छे विचारशील प्रन्थ देखना चाहिये । प्रथम चिदानन्दजी के बाद है। बालोत्तरे की भावहर्षीयशाखा और पाली की हैं। बीकानेर आचार्यशाखा के श्री पूज्य सामप्रभसूरि दूसरे चिदानन्दजी जो उपरोक्त सुखसागरजो के शिष्य अद्यपक्षोयशाखा के अब श्रीपूज्य नहीं हैं, केवल यति थे, वे भी उल्लेखनीय जैन योगी थे। इनके रचित ही हैं । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034877
Book TitleJain Shraman Sangh ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain
PublisherJain Sahitya Mandir
Publication Year1959
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size133 MB
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