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________________ जैन श्रमण संघ-संगठन का वर्तमान स्वरूप १०३ ADMIIBARDSTIATID iraniode! alia n ORMATIO- aation IITRINDATIHD HIDDHI MID DIABETiDSTITUTID-DIINDITED TOLD-TODam है। स्त्रियों की नग्नता अव्यवहारिक और अनिष्ट गंगदेव भदगुप्त होने से स्त्रियों की प्रव्रज्या का निषेध है। इस धर्मसेन श्रीगुप्त वन परम्परा के अनुसार स्त्रियों को मोक्ष नहीं होता। दोनों परम्पराओं के अनुसार भद्रबाहु अन्तिम नग्नता, स्त्रीमुक्ति निषेध केवलिकवलाहार निषेध श्रुतकेवली हुए। आदि बातों में श्वेताम्बरों से इनका भेद है । दिग- इसके बाद दिगम्बर परम्परानुसार पांच ग्यारह म्बर परम्परानुसार उनकी वंशपरम्परा इस प्रकार है। अंगधारी ( नक्षत्र, जयपाल, पाण्डु, धक्सेन और तुलना की दृष्टि से साथ २ श्वेताम्बर परम्परा का कंस) हुए इसके सुभद्र, यशोभद्र, यशोबाहु और भी उल्लेख कर दिया जाता है: लोहार्य, एक अंगधारी हुए। यहां तक वीर निर्माण श्रुतकेवली सं०६८३ पूर्ण हुआ इसके बाद श्रुत का विच्छेद दिगम्बर श्वेताम्बर हो गया। महावीर महावीर दिगम्बर सम्प्रदाय में कुन्दकुन्द, समन्तभद्र सुधर्म सुधर्म उमास्वाति, पूज्यपाद देवनन्दी, वज्रनन्दी, अकलंक जम्यू जम्बू शुभचन्द्र, अनन्तकीर्ति, वीरसेन, जिनसेन, गुणभद्र विष्णु प्रभव आदि बहुमान्य विद्वान् आचार्य हुए हैं। पं० माशा. नंदी शय्यंभव धरजी महान विद्वान् श्रावक हुए हैं। इन आचार्यों अपराजित यशोभद्र के सम्बन्ध में विशेष "परिचय महाप्रभाविक जैनागोवर्धन संभूतिविजय चार्य' शीर्षक पिछले परिच्छेद में दिया जा चुका है। भद्रबाहु भद्रबाहु संघ पचिय:-दिगंबर मान्यता के अनुसार संवत् २६ में मूलसंघ का प्राकात आचार्य श्रहंद बलि दिगम्बर श्वेताम्बर ( जिन्हें गुप्ति गुप्त अथवा विशाख भी कहते हैं ) ने विशाख स्थूलिभद्र चार संघों के रूप में विभक्त कर दिया। उनके प्रौष्ठिल महागिरि चार शिष्य उन संघों के नेता हुए। उनके नाम इस सुहस्ति प्रकार हैं:जयसेन गुणसुन्दर १) नन्दी संघ-इसके नेता माधनन्दी थे। कालक चातुर्मास में ये नन्दी वृक्ष के नीचे ध्यान करते थे इस सिद्धार्थ स्कन्दिन पर से यह नाम पड़ा। धृतिसेन देवतीमित्र (२ ) सेन संघ-इसके नेता जिनसेन थे। विजय पार्य मंगू (३)सिंह संप–इसके नेता सिंह थे। ये सिंह बुद्धिन आये धर्म की गुफा में चातुर्मास करते थे ऐसा कहा जाता है। दशपूर्वधर क्षत्रिय नागसेन Shree Sudhammaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034877
Book TitleJain Shraman Sangh ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain
PublisherJain Sahitya Mandir
Publication Year1959
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size133 MB
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