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________________ श्वेतांबर स्थानकवासी जैन ३१ जाति के आगेवानों में से ये एक थे । सं० १९९४ में जब कंपनी खूब तरक्की कर रही थी, इनका देहांत हो गया खीमजीभाई चांपसी सेठके दूसरे पुत्र खीमजीभाई थे । इनका जन्म सं० १९१७ में हुआ था । इनका ब्याह श्रीमती सोनबाईके साथ हुआ था । इनके आठ संताने हुई परन्तु श्रीमती सुंदरबाईके सिवा अब सबका देहांत हो गया है । श्रीमती सुंदरबाईके लग्न सेठ लखमसी नप्पुके पुत्र जादवनी भाईसे हुए हैं । 1 इन्होंने अपने गाँव देसलपुर में एक बड़ी बिल्डिंग बंधवाई है । इन्होंने अपनी दो कन्याओंके लग्न बड़ी धूमधाम के साथ किये । उनमें तीस हजारका खर्चा किया और प्रत्येक लड़कीको पचीस पचीस हजार रुपये नकद जेवर के अलावा दिये । इन्होंने अपनी मातुःश्री श्रीमती मेघीबाईके देहांत होनेपर पन्द्रह हजार रुपये धर्मादेमें और जातिको जिमाने में दिये । । इन्होंने गुप्त और प्रकट धर्मादा भी बहुत किया । प्रकट रकमें जो मालूम हुईं वे ये हैं १५०००) सं० १९९६ के दुष्कालमें कच्छमें सस्ते भावसे अनाज बेचने के लिए दुकान निकाली । सर्वधा गरीबों को मुफ्त में अनाज दिया । उसमें खर्चे Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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