________________
स्थानकवासी जैनसद्गृहस्थ.
बाद यह रिवाज, कमसे कम अपने घरमें बिलकुल न किया जाय । सपूत पुत्रने अपने पिताकी आज्ञाका पालन किया । इतनाही नहीं पिताकी मृत्युके समय इन्होंने पचास हजार रुपयेका दान दिया। इनके अन्य संबंधियोंने भी उसी समय सम मिलाकर पचीस हजारका दान दिया।
ये भी अपने पिताश्रीके समान ही उदार, सरल और निरमिमानी हैं। इनके पिता जैसे हर बरस दस बारह हजारका दान दिया करते थे, वैसे ही ये भी दिया करते हैं।
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com