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________________ जैनरत्न ( उत्तरार्द्ध) हिंसाको रोकने के लिए इन्होंने और इनके मामाके लड़के सेठ शान्तिदास आशकरणने यह हिंसा बंद करानेके काममें मदद की। स्टेटने कानुन बनाया कि देवीके आगे कोई हिंसा न करे । अगर करेगा तो पचास रुपये जुर्माना होगा और छः महीनेकी नेल होगी । यह फर्मान शारदा मंदिरके आगे थंभों पर खोद दिया गया है । स्टेटने यह हिंसा बंद की इसके लिए मेवजी सेठने और शान्तिदास सेठने वहीं पन्द्रह हजार रुपये लगाकर. एक हॉस्पिटल खुलवा दिया। १००००) बंबई में रहनेवाले स्थानकवासी जैनों के लिए धर्म कार्य करनेके लिए संघका कोई स्थानक न था । संघको धर्मकरणी करनेमें बड़ी कठिनता पड़ती थी। इसलिए इन्होंने, कुछ आगेवान गृहस्थोंके साथ मिलकर स्थानक बनवानेकी बात की । इतना ही नही चंदेका प्रारंभ दस हजार रु. देकर किया और महनत करके २४३०००) की रकम जमा की। उसीका फल यह कांदेवाड़ी मुहल्लेका स्यानक है। सार्वमनिक जीवदयामंडल घाटकूपरकी सं० १९७९ में स्थापना हुई । उसकी, प्रारंभसे सं० १९८४ तक प्रमुख रहकर, सेवा की। इसमें इन्होंने जदा जुदा समयमें अच्छी रकम भी दी। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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