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________________ जैनरत्न ( उत्तरार्द्ध ) सांगानेरके गोलखसे ( रोजाना ) चार आने भीलवाड़े गोलखसे ( रोजाना ) चार आने इस तरह पन्द्रह रुपये मासिकका तांबापत्र सं० १८८३ के सावन सुदि ८ शुक्रवारको कर दिया । यह रुपये चांदोड़ी थे । इनके उदयपुरी अब भीलवाड़े के खजाने से १३३||||| नकढ़ मिलते हैं । १४० इसके बाद महाराणाजी श्रीजवानसिंहजी के समय से चांदोडी ४) रु. मासिक दाणसे मिलनेका हुक्म सं० १८९१ चेत सुदि ७ को और हुआ । अब यह रकम ३) रु. उदयपुरी वाणनाथ - जीसे मिलती है । फिर सवा तीन बीघे जमीन माफीमें मिली यह आयड़के पास है । उसका तांत्रापत्र महाराणाजी श्रीजवान सिंहजीने सं० १८९२ बेसाख वदि ५ को कर दिया । उदयपोलके बाहर भी पौने तीन बीघे जमीन उनको माफीमें मिली है । नगराजजी महाराज जब सं० १८८९ में यहाँ आये तब महाराणाजी श्रीजवान सिंहजीने उनको पालखी बैठने को और छड़ी आगे रखवाने को दी । इसका परवाना सं० १८८९ का पोस सुदि ११ के दिन कर दिया । बड़ेके राजाजी भीमसिंहजीको नगराजजी महाराजने कठिन रोगसे छुड़ाया इसलिए उन्होंने चाँदोकी छड़ी और पालखी दिये । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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