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________________ ammmmmrrow १०८ जैनरत्न ( उत्तरार्द्ध) सं० १९७३ में होमरूलकी स्थापना हुई। ये उसके सभासद बने और कार्य करने लगे। खेडेके सत्याग्रहमें खेड़ा जिलेमें और सन् १९२१ के सत्याग्रहमें भरोच जिलेमें इन्होंने करीब ११० गाँवोंमें फिरकर लोगोंमें सत्याग्रहकी भावना फैलानेका कार्य किया । सं० १९७७ में इन्होंने मढडामें 'लालन निकेतन' की स्थापना की । इसमें आध्यात्मिक जीवन बितानेवाले रहते थे । मढ़ाहीमें सं० १९७८ में उद्योगशालाकी और सं० १९७९ में योगाश्रमकी और सं० १९८० में 'भारतमंदिर' की स्थापना की। इन्हीं संस्थाओंके कारण सं० १९८१ में काठियावाड परिषदके साथ और फिर गांधीजीके साथ झगड़ा हुआ । इससे संस्थाओंको सहायता मिलनी बंद हो गई और सं० १९८२ में ये संस्थाएं बंद हो गई । __काठियावाड़ें, कच्छ, महाराष्ट्र और गुजरातमें जहाँ जहाँ राष्ट्रीय, सामाजिक और धार्मिक परिषदें हुई ये उनमें शामिल हुए और अपनी ओजस्विनी एवं मधुर भाषण शैलीसे लोगोंको मुग्ध कर लिया। शिवजीभाई बड़े ही उद्योगी और दृढ निश्चयी मनुष्य हैं । इन्होंने अनेक विरोधोंकी आँधीका मुकाबिला किया है। कभी जीते हैं कभी हारे हैं, भगर ये अपने विचारों पर हमेशा स्थिर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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