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श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैन
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हुए इनके परिचयने लोगोंको शंकाकी जगह दा । इस अवसर पर इनको श्रीयुत माणेकजी पीतांबरने - जो इनके अनन्य मित्रोंमें सेभक्तोंमेंसे एक थे - इनका ध्यान इस ओर खींचा और कहा - " स्त्री समाजके साथ आपका जो परिचय बढ़ रहा है वह किसी दिन आपको और कार्यको हानि पहुँचायगा । " मगर शिवजीभाई अपनी धुन में थे । इन्होंने इस सूचना पर ध्यान नहा दिया । सं० १९६६ हीमें इन्होंने पालीतानेमें 'जैन विधवाश्रम ' की स्थापना की । इस आश्रमकी स्थापनाने विरोधको बहुत ही अधिक बढ़ा दिया |
चारों तरफ से विरोधके बादल घिर रहे थे उसी समय सं० १९६६ हीमें इन्होंने पालीतानेमें ' आनंदसमाज ' का महोत्सव किया। कहा जाता है कि पालीतानेके पहाड़ पर इनने और पंडित लालनने भक्त - मंडलीसे अपनी पूजा कराई थी । वे इससे इन्कार करते हैं और कहते हैं, - " हमने पहाड़पर क्या दूसरी जगह भी कभी अपनी पूजा नहा कराई थी । हमारे विरोधियोंने यह झूठी अफवा उड़ाई है । " परंतु विरोध इतना । बढ़ गया था कि, पंडित लालनको अनेक शहरों और गाँवोंके संघोंने ' संघ बाहर
और इनको
"
कर दिया ।
सं० १९६९ में पालीतानेमें जल - प्रलय हुआ और 'जैन बोर्डिग ' और ' जैन विधवाश्रम ' नष्ट हो गये । ये भी उसी
समयसे आकर मढडामें एकांत जीवन बिताने लगे ।
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