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________________ वेताम्बर मूर्तिपूजक जैन ९७ नहीं है । अंतम इन्होंने श्रम करके रुपये जमा किये और अब शीघ्र ही मंदिर बन जायगा । इनका स्वभाव सरल और शांत है । बड़े प्रेमसे ये अतिथि सेवा करते हैं । धनपाकर भी इनको आभमान नहीं है । सेठ शिवचंद्रजी इनके पिताका नाम जीवराजजी और दादाका नाम अगरचंद्रजी था । इनका गोत्र - ऋणजरोत कोठारी और जाति ओसवाल है । श्वेतांबर मूर्तिपूजक जैनधर्मके पालक हैं । इनके दादा मु० समेर ( जोधपुर से दिगरस ( वराड़ ) में सौ बरस पहले आये थे । ये साधारण इंग्लिश पढ़के अपने कारबार में लग गये थे । इनका व्याह अठारह बरसकी उम्र में हुआ था । इनके चार बहिनें और एक भाई लोभचंद्रजी हैं । लोभचंद्रजी मेटिक पढ़े हैं । 1 इनका जन्म सं० १९६१ में हुआ था । ये बड़े ही उत्साही और धर्मकाम रस लेनेवाले व्यक्ति हैं । दिगरसमें जैनमंदिर बनवाने के लिए जो चंदा हुआ था उसमें इन्होंने अच्छो रकम दी थी । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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