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________________ श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैन ८९ दुकान खोली। दुकानको अभी थोड़ा ही समय हुआ था कि श्रीयुत पाबूदानजीका देहांत हो गया । श्रीयुत पाबूदानजीके तीन लड़के हैं - १ जोगराजजी २ लूणकरणजी और ३ भोमराजजी | जब श्रीयुत पाबूदानजीका देहान्त हुआ तब इनकी उम्र छोटी थी । अपने मामाकी योग्य देखरेखमें इन्होंने कामकाज सीखा और दूकानमें अपने मामाको बहुत अच्छी सहायता दे रहे हैं। तीनों भाई बड़े अच्छे मिलनसार, सुशील और धर्मात्मा मनुष्य हैं । पदमचंद्रजी कोचर श्रीयुत पाबूदानजीके देहांत के बाद श्रीयुत पदमचंद्रजी न इतने परिश्रम से दुकानका कामकाज किया कि, अहमदाबाद में यह पेढ़ी एक बहुत प्रतिष्ठित हो गई । पद्मचंद्रजी की सबसे बडी नीति रोजगार करनेमें ईमान्दारी है । आज तक जिसके साथ इनका काम पड़ा वह इनकी ईमान्दारीका कायल हो गया । विदेशोंम इतनी साख हो गई कि, इस पेढ़ीकी किसी भी बात में कभी कोई शंका नहीं करता । इनका मुख्य काम कपडेकी आदत है । इसलिए मिलोंके साथ उनका काम पड़ता है। मिलोंवाले श्रीयुत पद्मचंद्रजीकी प्रामाणिकतसे प्रसन्न हैं और यदि कभी कोई वांधाकी (विवादकी) बात आ पड़ती है तो मिलोंवाले श्रीयुत पद्मचंद्रजीकी बात स्वीकार करते हैं 1 ये बड़े धर्मात्मा पुरुष हैं । यदि कोई साधर्मी भाई देशसे Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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