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जैन - रत्न
वर्षा बीतने और मार्गों के साफ हो जाने पर साहूकार वहाँसे रवाना हुआ और अपने नियत स्थानपर पहुँचा ।
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दूसरा भव— मुनियोंको शुद्ध अन्तःकरणसे दान देनेके प्रभाव से 'धन' सेठका जीव, मरकर, उत्तर कुरुक्षेत्र में, सीता नदी के उत्तर तटकी तरफ, जम्बू वृक्षके उत्तर भागमें, युगलिया रूपसे उत्पन्न हुआ | उस क्षेत्रमें हमेशा एकांत सुखमा आरा रहता है । वहाँ के युगलियोंको तीसरे दिनके अन्तमें भोजन करने की इच्छा होती है । उनका शरीर तीन कोसका होता है । उनकी पीठमें दो सौ छप्पन पसलियाँ होती हैं । उनकी आयु तीन पल्योपमकी होती हैं। उन्हें कषाय बहुत थोड़ी होती है, ऐसे ही माया-ममता भी बहुत कम होती है । उनकी आयुके जब ४९ दिन रह जाते हैं तब त्रीके गर्भ से एक सन्तानका जोड़ा उत्पन्न होता है । आयु समाप्त होने तक अपनी सन्तानका पालनकर अंतमें वे मरने पर स्वर्गमें जाते हैं । उस क्षेत्रकी मिट्टी शर्करा के समान मीठी होती है । शरद ऋतुकी चन्द्रिकाके समान जल निर्मल होता है । वहाँ दश प्रका रके कल्पवृक्ष इच्छित पदार्थको देते हैं। इस प्रकारके स्थान में धन सेठका जीव आनन्द-भोग करने लगा |
तीसरा भव—- युगलियाका आयु पूर्णकर धनसेठका जीव मरा और पूर्व संचित पुण्य - बलके कारण सौधर्म देवलोकमें जाकर देवता हुआ ।
* देखो पेज ६-७
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