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________________ जैनरत्न (उत्तरार्द्ध) बतावें, जैनोंके हृदयमें सम्मेतशिखरके लिए कैसी लागणी है सो सरकारको समझा और सरकारसे अपील करें कि वह सम्मेतशिखरकी पवित्रताको बंगले न बँधवाकर अक्षुण्ण-कायम रहने दे। ___हरेक चीनको खुद देखना और उससे कुछ सीखना यह इनके हृदयकी उत्तम भावना है। इसी मावनाके कारण इन्होंने लगमग सारा हिन्दुस्थान देखा है । शत्रुनय, सम्मेतशिखर केसरियाजी आदि प्रसिद्ध जैन तीर्थोकी इन्होंने सकुटुंब यात्रा की है। इतना ही नहीं हिंदुओं के प्रसिद्ध तीर्थस्थान श्रीनाथनी, काशीनी, गयाजी आदि भी ये गये हैं और उनकी स्थितिका अवलोकन किया है। शिमला, उटकमंड, नेनीताल जैसी शीतल पहाडियोंको, कलकत्ता और सीलोन जैसे बंदरोंको, उदयपुर, दिल्ली, आगरा जैसे ऐतिहासिक शहरोंको और चित्तौड़गढ, सिंहगढ, रायगढ जैसे प्रसिद्ध किलोंको इन्होंने देखा है और उनसे बहुत कुछ ज्ञान प्राप्त किया है। स्मॉलकॉजिन कोर्टमें छः बरस प्रेक्टिस करने के बाद ये इतना धन संग्रह कर सके कि जिससे इंग्लेंडमें जाकर बेरिस्टरी पास कर सके । सन् १९१२ में इंग्लेंड जाकर बेरिस्टरीमें पहले नंबर पास हुए। पचास मुहरें इनाम मिलीं। वापिस आकर हाइकोर्टमें प्रेक्टिस करने लगे और आजतक बड़ी सफलताके साथ कर रहे हैं। उन्हीं दिनों हिन्दु युनिवरसिटि बनारसकी स्थापना हुई थी। ये उसकी सिनेटमें चुने गये और चार बरसतक सीनेटमें उत्साहके Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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