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________________ GO श्वेतांबर मूर्तिपूजक जैन बी. ए. पास होनेके बाद इनको नौकरी करनी पड़ी। ३०) रुपये महीना कमाकर भी इन्हें जो कौटुंबिक सुख था वह स्वर्गीय था । श्रीमती गुलाब बहिनने अपने घरकी व्यवस्था इतनी सुंदरतासे की कि अच्छे अच्छे पैसेदारोंके यहाँ मी वैसी व्यवस्थाका, और व्यवस्था व स्नेहसे प्राप्त सुखका अमाव था। नौकरी करते हुए भी श्रीयुत मकननीमाईने आगे बढ़नकी अभिलाषाको न छोड़ा। ये लॉकॉलेजमें जाते रहे और एलएल. बी. पास कर बंबईकी, स्मॉल कॉनिज कोईमें विकालत करने लगे। थोड़े ही दिनोंमें इनकी प्रेक्टिस अच्छी चल निकली। कॉलेजमें ज्ञाति-सेवा और देश-सेवाके अनेक मनोरथ होते हैं परन्तु कमाईमें लगनेपर वे मनोरथ नष्ट हो जाते हैं, मगर मकनजीमाईके सेवाके भाव नष्ट न हुए। ज्योंहीं इनको अभ्यामके कामसे अवकाश मिला इन्होंने जाति-सेवा आरंभ कर दी। ये मांगरोल जैनसमा बंबईके मंत्री बने और उसका कार्य इस उत्तमताके साथ किया कि भाज वह संस्था बहुत उन्नत हो गई है और एक उत्तम कन्या-शाला चला रही है। __ इनकी कार्य दक्षतासे सन् १९०७ में ये श्वेतांबर जैन कॉन्फसके असिस्टेंट सेक्रेटरी चुने गये । बंगाल गवर्नमेंटने जब सम्मेतशिखरजीके पवित्र पर्वतपर बँगले बंधवाना नक्की किया तब, कॉन्फरंसने श्रीयुत मकनजीभाईको कलकत्ते इसलिए भेजा कि ये जाकर सरकारको सम्मेतशिखर पर जैनोंका जो पुराना हक है उसे Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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